: नवरात्रि पर हर ओर भक्तिमय माहौल देखने को मिल रहा है. मंदिरों में हर रोज भजन-कीर्तन हो रहे हैं. श्रद्धालु दूरदराज के देवी मंदिरों में दर्शन करने जा रहे हैं. देवभूमि उत्तराखंड के सभी मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी के देवी मंदिरों में भी श्रद्धा का सैलाब उमड़ रहा है. आइए अब आपको शहर के पांच प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन कराते हैं.
15हल्द्वानी के रानीबाग क्षेत्र में पहाड़ी पर मां शीतला देवी का मंदिर स्थापित है. यहां आकर अद्भुत शांति का अहसास होता है. शीतला देवी को दुर्गा माता का अवतार माना जाता है. इस मंदिर में मां के दर्शन करने स्थानीय लोगों के साथ साथ दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. नवरात्रि में माता के दरबार में भक्तों की काफी भीड़ लगी रहती है. मान्यताओं के अनुसार, शीतला देवी माता भक्तों को सभी रोगों से मुक्ति दिलाती हैं. हल्द्वानी की जगदम्बा कॉलोनी में मां जगदम्बा मंदिर स्थित है. चार दशक पहले इस मंदिर की स्थापना हुई थी. मंदिर में रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु माता भगवती के दर्शन करने आते हैं. हर मंगलवार मंदिर में श्री हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है. नवरात्र में मंदिर में भक्तों की खूब भीड़ लगी रहती है. रोज शाम माता के भजन-कीर्तन किए जाते हैं.
25हल्द्वानी की जगदम्बा कॉलोनी में मां जगदम्बा मंदिर स्थित है. चार दशक पहले इस मंदिर की स्थापना हुई थी. मंदिर में रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु माता भगवती के दर्शन करने आते हैं. हर मंगलवार मंदिर में श्री हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है. नवरात्र में मंदिर में भक्तों की खूब भीड़ लगी रहती है. रोज शाम माता के भजन-कीर्तन किए जाते हैं. मां काली का प्राचीन मंदिर हल्द्वानी के गौलापार में जंगल के बीचोंबीच स्थित है. कथित तौर पर पश्चिम बंगाल के रहने वाले एक भक्त को देवी ने सपने में दर्शन दिए थे और इस जगह पर जमीन में दबी अपनी प्रतिमा के बारे में बताया था. जिसके बाद जमीन की खुदाई कर मां काली समेत सभी मूर्तियों को बाहर निकाला गया और जंगल के बीचोंबीच ही देवी का मंदिर स्थापित किया गया, जिसे आज कालीचौड़ मंदिर के नाम से जाता है. इस मंदिर में नवरात्रि में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है.
35मां काली का प्राचीन मंदिर हल्द्वानी के गौलापार में जंगल के बीचोंबीच स्थित है. कथित तौर पर पश्चिम बंगाल के रहने वाले एक भक्त को देवी ने सपने में दर्शन दिए थे और इस जगह पर जमीन में दबी अपनी प्रतिमा के बारे में बताया था. जिसके बाद जमीन की खुदाई कर मां काली समेत सभी मूर्तियों को बाहर निकाला गया और जंगल के बीचोंबीच ही देवी का मंदिर स्थापित किया गया, जिसे आज कालीचौड़ मंदिर के नाम से जाता है. इस मंदिर में नवरात्रि में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है. उत्तर भारत का एकमात्र अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर हल्द्वानी के बेरीपड़ाव क्षेत्र में स्थित है. मंदिर में 18 भुजाओं वाली मां लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान है. लोगों में इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है. नवरात्रि में मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगी रहती है. मान्यता है कि मां अष्टादश महालक्ष्मी माता भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और उनके आसपास कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होने देती हैं.
45उत्तर भारत का एकमात्र अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर हल्द्वानी के बेरीपड़ाव क्षेत्र में स्थित है. मंदिर में 18 भुजाओं वाली मां लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान है. लोगों में इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है. नवरात्रि में मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगी रहती है. मान्यता है कि मां अष्टादश महालक्ष्मी माता भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और उनके आसपास कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होने देती हैं. हल्द्वानी शहर के सबसे पुराने मंदिरों में गायत्री माता का मंदिर भी आता है. यह मंदिर बाजार क्षेत्र के मटर गली में स्थित है. यह 150 साल पुराना मंदिर है. नवरात्रि में गायत्री मंदिर में भक्तों की बहुत भीड़ लगी रहती है. सुबह से शाम तक लोग मां के दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर वट के पेड़ के नीचे स्थित है. इस नवरात्रि माता के दर्शन करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होगी.
55हल्द्वानी शहर के सबसे पुराने मंदिरों में गायत्री माता का मंदिर भी आता है. यह मंदिर बाजार क्षेत्र के मटर गली में स्थित है. यह 150 साल पुराना मंदिर है. नवरात्रि में गायत्री मंदिर में भक्तों की बहुत भीड़ लगी रहती है. सुबह से शाम तक लोग मां के दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर वट के पेड़ के नीचे स्थित है. इस नवरात्रि माता के दर्शन करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होगी.