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    Home » ब्लैक होल क्या होता है, कैसे बनता है और कैसे खत्म होता है? आसान शब्दों में जानें हर सवालों का जवाब…
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    ब्लैक होल क्या होता है, कैसे बनता है और कैसे खत्म होता है? आसान शब्दों में जानें हर सवालों का जवाब…

    By adminMay 23, 2025No Comments6 Mins Read
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    नई दिल्ली :- अगर आप ब्रह्मांड के बारे में जानने और पढ़ने में रुचि रखते हैं तो आप ब्लैक होल के बारे में भी जरूर जानते हैं. अगर आप ब्लैक होल के बारे में जानते हैं या जानने के बारे में रुचि रखते हैं तो आपको हमारा यह आर्टिकल पढ़ने में काफी मजा आएगा. इसमें हम आपको ब्लैक होल के बारे में बहुत सारी रहस्यमयी बातें बताने जा रहे हैं. दरअसल, ब्लैक होल ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमयी चीजों में से एक है.

    दरअसल, यह ब्लैक होल तब बनते हैं जब तारे और गैस जैसे बहुत सारे पदार्थ एक छोटी जगह पर सिकुड़ जाता है. इसके कारण से ब्लैक होल में इतना पावरफुल गैविटेशनल पैदा होता है, जिसमें लाइट भी खो जाती है. ब्लैक होल के बेहद पावरफुल गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से ही लाइट भी उससे बाहर नहीं निकल पाते हैं. ब्लैक होल में विज्ञान के कई नियम एक-साथ काम करते हैं, जिनमें गुरुत्वाकर्षण, क्वांटम मैकेनिक्स (छोटे कणों का विज्ञान), और थर्मोडायनामिक्स (ऊर्जा का विज्ञान) शामिल हैं, लेकिन कभी-कभी ये नियम एक-दूसरे से टकरा भी जाते हैं. ऐसे में ग्रैविटी का ब्लैक होल में बहुत बड़ा रोल होता है.

    ब्लैक होल क्या है?

    ब्लैक होल एक ऐसी जगह है, जहां ब्रह्मांड में घूमने वाली बहुत सारी चीज एक छोटी सी जगह में समा जाती है. इसके चारों ओर इवेंट होराइजन नाम की एक बाउंड्री होती है, जो दिखाई नहीं देती और नाही सॉलिड होती है, लेकिन वहां ग्रैविटी इतना ज्यादा और तेज होता है कि उससे कुछ भी बाहर नहीं जा सकता. ब्लैक होल के बीच में सिंगुलैरिटी होती है. सिंगुलैरिटी में पदार्थ इतना सिकुड़ ज्यादा है कि उसकी घनत्व अनंत हो जाती है. इस कारण ब्लैक होल की सिंगुलैरिटी में टाइम और लोकेशन का कोई मतलब नहीं रह जाता. इसके अलावा वहां पर फिज़िक्स का कोई नियम भी काम नहीं करता है. ब्लैक होल को किसी ऐसे वैक्यूम क्लीनर की तरह समझ सकते हैं, जो दिखाई नहीं देती है लेकिन वो हरेक चीज़ को अपनी ओर खींच लेती है, यहां तक कि लाइट यानी रोशनी भी उसके अंदर समा जाती है. इसी कारण उनका नाम ब्लैक होल है.

    ब्लैक होल के बनने के तरीके

    बड़े तारों से: जब कोई बड़ा तारा अपनी एनर्जी खत्म कर लेता है, तो वो सिकुड़ जाता है और ब्लैक होल बन जाता है. ऐसे ब्लैक होल को स्टेलर ब्लैक होल कहते हैं.

    गैस के बादलों से: जब कोई नई गैलेक्सी बन रही होती है तो बहुत सारे गैस के बादल कॉलैप्स होते हैं, उस दौरान भी ब्लैक होल बनते हैं, जिसे सुपरमैसिव ब्लैक होल कहते हैं.

    ब्रह्मांड के शुरुआती समय में: ब्रह्मांड के शुरुआती दौर में कोई छोटे-छोटे बदलाव हुए थे, जिसे क्वांटम फ्लक्चुएशन्स (Quantum Fluctuations) कहते हैं. इसके कारण उस वक्त प्राइमॉर्डियल (Primordial) ब्लैक होल बने थे.

    ब्लैक होल का द्रव्यमान और इवेंट होराइजन

    ब्लैक होल का द्रव्यमान यानी Mass, यह तय करता है कि उसका इवेंट होराइजन कितना बड़ा होगा. इवेंट होराइजन के बारे में हमने आपको ऊपर बताया कि यह एक अदृश्य सीमा होती है, जिसके बाद कुछ भी बाहर नहीं निकल पाता है. ब्लैक होल का मास यानी द्रव्यमान एक जैसा नहीं होता है. ये दो तरह के होते हैं. स्टेलर ब्लैक होल का द्रव्यमान सूरज के द्रव्यमान से 8 से 60 गुना ज्यादा हो सकता है, जबकि सुपरमैसिव ब्लैक होल का द्रव्यमान सूरज के द्रव्यमान से लाखों-करोड़ों गुना ज्यादा होता है.

    ब्लैक होल के फिज़िकल प्रोपर्टीज़ की बात करें तो इसे तीन मुख्य चीजों से समझा जा सकता है. इनमें द्रव्यमान (M) जिससे ब्लैक होल का वजन पता किया जाता है. चार्ज (Q) जिससे ब्लैक होल में इलेक्ट्रिक चार्ज है या नहीं, उसका पता चलता है. एंगुलर मूमेंटम या स्पिन (J), इससे ब्लैक होल के घूमने की स्पीड का पता चलता है. इनके आधार पर ब्लैक होल को चार मुख्य प्रकार में बांटा गया है:

    Schwarzschild black hole – यह ब्लैक होल न तो घूमता है और न ही इसमें चार्ज होता है.
    Kerr black hole – यह ब्लैक होल घूमता है, लेकिन इसमें चार्ज नहीं होता.
    Reissner–Nordström black hole – इस ब्लैक होल में चार्ज होता है, लेकिन यह घूमता नहीं है.
    Kerr–Newman black hole – यह ब्लैक होल घूमता भी है और इसमें चार्ज भी होता है.
    प्रोफेसर अरुण मंगलम का इंटरव्यू

    इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) के वरिष्ठ प्रोफेसर अरुण मंगलम ने ईटीवी भारत को दिए एक विशेष इंटरव्यू में ब्लैक होल के बारे में विस्तार से बताया. प्रोफेसर मंगलम सैद्धांतिक खगोल भौतिकी, गुरुत्वाकर्षण गतिशीलता, सापेक्षतावादी खगोल भौतिकी, गैस गतिशीलता, तारकीय गतिशीलता, और ब्लैक होल सिस्टम, आकाशगंगाओं, और चुंबकीय क्षेत्रों से संबंधित हाइड्रोमैग्नेटिक प्रक्रियाओं रिसर्च करते हैं. उन्होंने ईटीवी को ब्लैक होल के बारे में बताया, लगभग हर गैलेक्सी यानी आकाशगंगा के केंद्र में एक ब्लैक होल होता है. जब कोई तारा अपनी न्यूक्लियर एनर्जी खत्म कर लेता है तो वह अपने ही ग्रैविटी के कारण सिकुड़ जाता है और इसी सिकुड़न से ब्लैक होल बनता है. उन्होंने आगे बताया, ब्लैक होल में इतना ज्यादा पदार्थ (मास) एक इतनी छोटी सी जगह में समजा जाता है कि यह स्पेस-टाइम की थ्योरी को पूरी तरह से बदल देता है. स्पेस-टाइम अंतरिक्ष और टाइम का फोर-डाइमेंशनल स्ट्रक्चर है, जहां सारी घटनाएं घटती है और ग्रैविटी काम करता है.

    प्रोफेसर अरुण मंगलम ने बताया कि आइंस्टीन की थ्योरी के अनुसार, ग्रैविटी का मतलब है कि द्रव्यमान (मास) अंतरिक्ष-समय (स्पेस-टाइम) को मोड़ देता है. इसके कारण चीजें उसकी ओर खींची चली जाती हैं. ब्लैक होल एक ऐसी जगह है, जो बाकी ब्रह्मांण से किसी भी तरह का संपर्क नहीं रखती है. ब्लैक से कोई भी जानकारी ना तो बाहर जा सकती है और ना ही इसके अंदर आ सकती है. ब्लैक होल में सामान्य सापेक्षता सिद्धांत (general theory of relativity) काम करती है. इस थ्योरी के अनुसार ही ग्रैविटी अंतरिक्ष और टाइम को मोड़ देता है, जिसे ‘स्पेस-टाइम’ कहते हैं.

    इस एक उदाहरण के जरिए समझें तो मान लीजिए कि सूरज इतना सिकुड़ जाए कि उसका आकार सिर्फ 3 किलोमीटर रह जाए, जो सूरज के असली आकार से 40 लाख गुना कम होगा. ऐसे में वह एक ब्लैक होल बन जाएगा. ऐसे ही अगर पृथ्वी भी सिकुड़ कर सिर्फ 8 मिलीमीटर रह जाए, जो पृथ्वी के असली आकार से एक अरब गुना कम होगा, तो पृथ्वी भी एक ब्लैक होल बन जाएगी. जनरल थ्यौरी ऑफ रिलेटिविटी के अनुसार, जो कुछ भी ब्लैक होल में गिरता है, वो हमेशा के लिए खो जाता और उसकी कोई भी जानकारी बाहर नहीं आ पाती.

    इनर्शिया और स्पेस-टाइम की समझ

    आइंस्टीन के जनरल थ्यौरी ऑफ रिलेटिबिटी ने इनर्शिया (Inertia) की हमारी समझ को पूरी तरह से बदल दिया है. इनर्शिया को हिंदी में जड़त्व कहते हैं. इसका मतलब होता है कि कोई चीज अपनी स्पीड और स्टेबिलिटी का विरोध करती है. पुराने जमाने में लोग सोचते थे कि इनर्शिया किसी फिक्स और स्टेबल अंतरिक्ष के खिलाफ काम करता है, लेकिन आइंस्टीन ने बताया कि ऐसा नहीं है. लिहाजा, आइंस्टीन की इस थ्यौरी के अनुसार अंतरिक्ष और स्पेस एकसाथ मिलकर ‘स्पेस-टाइम’ बनाते हैं, जो ग्रैविटी के कारण मुड़ जाते हैं. इस मुड़े हुए स्पेस-टाइम में कोई भी चीज सबसे सीधे रास्ते पर चलने की कोशिश करती है, जिसे जियोडेसिक कहते हैं. इन थ्यौरिज़ की वजह से हमें ब्रह्मांड की बारे में ज्यादा डिटेल्स, जैसे ब्लैक होल और ग्रहों की गति आदि को समझने में मदद मिलती है.

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