नई दिल्ली:- महंगाई बढ़ रही है लेकिन आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ रही है. यह देश के हर आदमी की शिकायत है. ऑफिस के आम कर्मचारी से लेकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के साथ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. करियर साइट लिंक्डइन पर एक यूजर ने इस मुद्दे को ट्रक ड्राइवर्स की सैलरी के साथ उठाया. रिविगो के फाउंडर दीपक गर्ग ने एक पोस्ट में कहा कि भारत में ट्रक ड्राइवर 2025 में भी 25,000-30,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं, जो 2015 में कमाते थे, यानी 10 सालों में उनकी इनकम नहीं बढ़ी. वहीं, एक दशक खर्चे बहुत बढ़ गए हैं.
आमदनी अट्ठानी, खर्चा क्यों रुपैया’
दीपक गर्ग के अनुसार, यह एक बुरा आर्थिक संकेत है. उन्होंने कहा कि अगर हर साल महंगाई की दर 6% हो तो दस वर्षों में क्यूमलेटिव इंफ्लेशन रेट 79% होगा, जो कि आमदनी के मुकाबले बहुत ज्यादा है. हालांकि, उन्होंने इस अनुमान को गलत बताते हुए कहते हैं कि महंगाई को एसेट क्लास ग्रोथ- जैसे कि रियल एस्टेट और इक्विटी बाजार को ध्यान में रखना चाहिए. यह व्यक्ति की परचेसिंग पावर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है. उन्होंने कहा कि अगर इसे भी जोड़ लिया जाता है तो यह आंकड़ा 10-12% होगा, और क्यूमलेटिव इंफ्लेशन रेट कहीं
क्या है बड़ा कारण
गर्ग का मानना है कि ट्रक ड्राइवर्स के साथ-साथ डिलीवरी बॉय, उबर और ओला ड्राइवर, पेंटर, वेल्डर, निर्माण कार्य में लगे मजदूर, फैक्ट्री कर्मचारी और कृषि काम करने वाले मजदूरों की हालत भी कुछ ऐसी ही है. हालांकि, इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि असंगठित क्षेत्र में मजदूरी स्थिर रहती है, जबकि संगठित क्षेत्र में ही वेतन वृद्धि देखने को मिलती है.
महंगाई के मुकाबले आमदनी की गणना करने के लिए वास्तविक आय या वास्तविक वेतन वृद्धि का उपयोग किया जाता है। यह गणना दर्शाती है कि किसी व्यक्ति या देश की आय महंगाई के प्रभाव के बाद वास्तव में कितनी बढ़ी है