नई दिल्ली:- दिवाली का पर्व समाप्त होते ही छठ पूजा की तैयारी शुरु हो गई है। सूर्योपासना का महापर्व छठ पूजा का प्रारंभ 5 नवंबर 2024 से हो रही है। जिसका समापन 8 नवंबर को होगा। यह त्योहार पूरे भारत में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
सनातन धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से छठ पर्व का आरंभ होता है। फिर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ व्रत करने के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूरज को जल देने के बाद व्रत का समापन किया जाता है।
आपको बता दें, छठ पर्व में महिलाएं नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाती हैं। आम तौर पर महिलाएं केवल मांग में सिंदूर लगाती हैं। लेकिन छठ के शुभ अवसर पर नाक के मांग तक सिंदूर लगाने की विशेष परंपरा रही है।
इसे सिंदूर जोड़ी भी कहते हैं, कहीं कहीं लोग इसे लोग ढासा भी कहते हैं। दरअसल इस प्रकर सिंदूर लगाने के पीछे भी कई मान्यताएं हैं। इसमें भी सिंदूर के रंग का भी अपना महत्व होता है। ऐसे में आइए जानते हैं छठ पर्व में नाक से मांग तक सिंदूर लगाने के पीछे क्या है रहस्य।
जानिए छठ में नाक से मांग तक सिंदूर का क्या है महत्व
प्राप्त जानकारी के अनुसार, छठ व्रती महिलाएं नाक से मांग तक खास सिंदूर लगाती हैं। मान्यता है कि लंबा सिंदूर पति के लिए शुभ होता है और यह परिवार में सुख-संपन्नता का भी प्रतीक भी है।
माना जाता है कि सिंदूर जितना लंबा होगा, पति की आयु भी उतनी ही लंबी होगी। यह भी कहा जाता है कि सिंदूर सुहाग यानी पति का प्रतीक है। जो महिलाएं सिंदूर छिपा लेती हैं, उनका पति समाज में छिप जाता है और तरक्की नहीं कर पाता। इससे उसकी आयु भी कम हो जाती है। इस कारण भी छठ के दौरान महिलाएं लंबा सिंदूर लगाती हैं। इसके माध्यम से वह अपने पति के प्रति प्रेम और सम्मान भी जाहिर करती हैं।
नारंगी सिंदूर ही क्यों लगाया जाता है
जानकारों के अनुसार, मांग में आपने सामान्य तौर पर लाल रंग का सिंदूर भरे हुए महिलाएं देखी होंगी, लेकिन छठ पर्व पर बिहार और झारखंड की महिलाएं नारंगी रंग का सिंदूर सिर से नाक तक लगाती हैं। इसका कारण इस रंग की शुभता है।
आपको बता दें कि सिंदूर हनुमान जी को चढ़ाया जाता है। भगवान हनुमान ब्रह्मचारी थे और विवाह के बाद दुल्हन का ब्रह्मचर्य व्रत समाप्त होकर ग्रहस्थ जीवन की शुरूआत होती है। ये प्रथा बिहार और झारखंड की ही नहीं बल्कि कई जगहों पर ऐसा होता है।