मध्यप्रदेश:– देशभर में कुत्तों के हमलों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में सबसे बड़ा खतरा रेबीज का होता है, जो एक घातक बीमारी है और एक बार लक्षण दिखने के बाद इसका कोई इलाज संभव नहीं होता. यही कारण है कि कुत्ते या किसी भी रेबीज से ग्रसित जानवर के काटने के तुरंत बाद रेबीज वैक्सीन लगवाना अनिवार्य माना जाता है. रेबीज वायरस नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है और दिमाग तक पहुंचकर मरीज की जान भी ले सकता है.
समय पर वैक्सीन लगवाने से शरीर में एंटीबॉडी बनती हैं जो वायरस को फैलने से रोकती हैं और जान बचाती हैं. इसीलिए डॉक्टर हमेशा सलाह देते हैं कि काटने के बाद देरी न करें और वैक्सीन का पूरा डोज समय पर लगवाएं. लेकिन अक्सर डॉक्टर यह भी कहते हैं कि वैक्सीन एक ही ब्रांड की लगवानी चाहिए. ऐसे में आइए जानें, कि डॉक्टर अक्सर क्यों एक ही ब्रांड की वैक्सीन लगाने की सलाह देते हैं.
एक ही ब्रांड की वैक्सीन क्यों जरूरी है?
रेबीज वैक्सीन बाजार में कई ब्रांड नाम से उपलब्ध हैं. हालांकि इनका उद्देश्य एक ही है, लेकिन हर ब्रांड की वैक्सीन की कम्पोज़िशन, मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस और इम्यून रिस्पॉन्स में हल्का अंतर हो सकता है. यही कारण है कि विशेषज्ञ एक ही ब्रांड की वैक्सीन का पूरा कोर्स लेने की सलाह देते हैं. जब मरीज पूरा शेड्यूल एक ही ब्रांड से पूरा करता है, तो शरीर में लगातार और स्थिर एंटीबॉडी बनती रहती हैं. अगर बीच में ब्रांड बदल दिया जाए, तो इम्यून सिस्टम को वायरस से लड़ने में दिक्कत आ सकती है और वैक्सीन का असर अधूरा रह सकता है. इससे शरीर में पर्याप्त सुरक्षा नहीं बन पाती और रेबीज जैसी खतरनाक बीमारी का जोखिम बना रहता है. इसलिए डॉक्टर आमतौर पर मिक्सिंग से बचने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि शुरुआती डोज जिस ब्रांड से शुरू हो, उसी से पूरा कोर्स करना चाहिए.
प्राइवेट और सरकारी अस्पताल में अलग-अलग टीका लगवाने के नुकसान
गाजियाबाद में पशु पालन विभाग में संयुक्त निदेशक डॉ. एस. पी पांडेय बताते हैं कि कई बार मरीज पहली डोज प्राइवेट अस्पताल से लगवाता है और दूसरी डोज सरकारी अस्पताल से या फिर किसी वजह से बीच में ब्रांड बदल जाता है. ऐसा करना जोखिमभरा हो सकता है. हर ब्रांड की वैक्सीन अलग तकनीक और स्ट्रक्चर पर आधारित होती है, जिससे उनका असर और एंटीबॉडी बनाने की क्षमता थोड़ी अलग होती है. जब बीच में ब्रांड बदला जाता है, तो शरीर में पर्याप्त और स्थिर इम्यूनिटी विकसित नहीं हो पाती. इससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है.
डॉ. एस. पी पांडेय बताते हैं कि ब्रांड बदलने पर कई बार इम्यून रिस्पॉन्स अधूरा रह जाता है और मरीज को अतिरिक्त डोज या फिर पूरे कोर्स को दोबारा शुरू करना पड़ सकता है. इससे समय, पैसे और मरीज दोनों की परेशानी बढ़ती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन भी यही सुझाव देता है कि रेबीज वैक्सीन का कोर्स एक ही ब्रांड से पूरा करना चाहिए. अगर किसी कारण से ब्रांड बदलना पड़े, तो यह केवल डॉक्टर की सलाह से और बहुत विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए.
क्या रखें ध्यान?
कुत्ते के काटने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.
हमेशा समय पर पूरा डोज लगवाएं, कोई डोज मिस न करें.
जिस ब्रांड से वैक्सीन शुरू हुई है, उसी से कोर्स पूरा करें.
अस्पताल बदलना पड़े तो डॉक्टर को पहले से जानकारी दें.
ब्रांड बदलने का निर्णय स्वयं न लें, डॉक्टर की सलाह पर ही करें.
वैक्सीन का पूरा शेड्यूल लिखित रूप में संभालकर रखें.