
सलमान रावी
‘पूर्वोत्तर भारत की खिड़की’ की पहचान हासिल करने वाले त्रिपुरा के तत्कालीन मुख्यमंत्री माणिक सरकार का प्रस्ताव था कि फ़ेनी नदी पर बांग्लादेश को भारत से जोड़ने वाला पुल बनाया जाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार ने इस प्रस्ताव को मंज़ूर कर लिया. फ़ेनी नदी पर ये पुल तैयार हो भी हो गया और मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल तरीक़े से इसका उद्घाटन किया.
फ़ेनी नदी उन सात नदियों में से एक है जिसके पानी के बँटवारे को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच कई दौर की वार्ता चलती रही है. ये नदी बांग्लादेश और भारत के लिए बराबर की अहमियत रखती है.
चूँकि बांग्लादेश अपनी आज़ादी की 50वीं वर्षगाँठ मना रहा है और इस मौक़े पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहाँ जा रहे हैं. इस यात्रा से पहले त्रिपुरा के दक्षिणी छोर सबरूम को बांग्लादेश के रामगढ़ से जोड़ने वाले 1.9 किलोमटर लंबे पुल का उद्घाटन दोनों देशों के बीच राजनयिक और सामरिक संबंधों के लिए बहुत मायने रखता है.
विदेश और ख़ास तौर पर भारत-बांग्लादेश संबंधों पर नज़र रखने वाले जानकार कहते हैं कि इसी वजह से इस पुल का नाम ‘मैत्री पुल’ रखा गया है.
जानकारों का कहना है कि पुल के शुरू हो जाने के बाद त्रिपुरा के सबरूम से चिट्टागोंग बंदरगाह की दूरी सिर्फ़ 80 किलोमीटर ही रह जाएगी, जिससे कारोबार और लोगों को आने-जाने में काफ़ी सहूलियत होगी.
पुल के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने सबरूम में ही ‘इंटिग्रेटेड चेकपोस्ट’ का उद्घाटन भी किया है.
पुल के उद्घाटन के बाद त्रिपुरा को इसलिए भी पूर्वोत्तर भारत के खिड़की की पहचान मिल रही है क्योंकि इसी रास्ते के ज़रिए पूर्वोत्तर भारत के किसान और व्यवसायी अपना सामान बांग्लादेश आसानी से ले जा सकते हैं और वहाँ से सामान अपने देश ला सकते हैं.
फ़िलहाल भारत बांग्लादेश से काग़ज़, रेडीमेड कपडे, धागा, नमक और मछली जैसी चीज़ों का आयत करता है जबकि बांग्लादेश भी रोज़मर्रा के इस्तेमाल की कई महत्वपूर्ण वस्तुओं के लिए भारत पर निर्भर है. इसमें खास तौर पर प्याज़, सूत, कपास, स्पंज आयरन और मशीनों के कलपुर्ज़े शामिल हैं.
पिछले साल की अगर बात की जाए तो कोरोना महामारी की वजह से दोनों देशों के बीच होने वाले व्यापार पर असर पड़ा था. लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार देखा गया है. इस साल जनवरी महीने में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था कि भारत और बांग्लादेश के लिए ‘वर्ष 2021 ऐतिहासिक’ रहेगा.
विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी ने भारत बांग्लादेश संबंधों पर कहा कि दक्षिण एशिया में भारत के व्यापार में सबसे बड़ा साझेदार बांग्लादेश ही है. बांग्लादेश को स्वाधीनता हासिल करवाने में भारत ने ही अहम भूमिका निभायी थी, लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को स्थापित होने में कई अड़चनें भी आईं.
1999 में त्रिपुरा के अगरतला और पश्चिम बंगाल के कोलकाता से बांग्लादेश की राजधानी ढाका के लिए बस की सेवा शुरू हुई. फिर 43 सालों से ठप पड़ी कोलकाता और ढाका के बीच की रेल सेवा भी शुरू हुई. लेकिन इसके शुरू होते होते साल 2008 आ चुका था.
वरिष्ठ पत्रकार सुधा रामचंद्रन के अनुसार कोलकाता और ढाका के बीच बहाल हुई रेल सेवाओं के बाद दोनों देशों के बीच कई अन्य रूटों पर रेल की सेवाएं शुरू हुईं. हाल ही में हल्दीबाड़ी और चिलाहाटी के बीच के रेल सेवा का उद्घाटन भी दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने साझा रूप से किया था.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मैत्री पुल के उद्घाटन के बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने कहा कि वो इस क्षेत्र में संपर्क साधनों को मज़बूत बनाने के भारत के संकल्प का समर्थन करती हैं. पीएम हसीना ने कहा कि संपर्क सूत्रों को मज़बूत करने की दिशा में मैत्री पुल का उद्घाटन एक ऐतिहासिक क्षण है. हसीना ने कहा कि तमाम संभावनाओं के बावजूद व्यापार के कई रुटों पर काम पूरे नहीं हुए थे. उनका ये भी कहना था कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को व्यापार के लिए बंदिश के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
त्रिपुरा के तत्कालीन मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने वर्ष 2010 में ही फ़ेनी पुल के निर्माण का प्रस्ताव केंद्र सरकार के सामने रखा था. कुल 133 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले इस पुल का काम वर्ष 2017 में ही शुरू किया गया, जिसे नेशनल हाइवेज इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड को आवंटित किया गया.
वरिष्ठ पत्रकार सुधा रामचंद्रन का मानना है कि भारत को बांग्लादेश के साथ रोड और रेल संपर्क बेहतर बनाने के अलावा इस बात को भी ध्यान में रखा होगा कि भारत के लिए जो बांग्लादेश के लोगों में सम्मान है, उसे कुछ नेताओं द्वारा समय-समय पर बांग्लादेश को लेकर दिए गए बयान प्रभावित न कर पाएं.