नई दिल्ली:– 16 संस्कारों में से एक अंतिम संस्कार को माना जाता है, यह व्यक्ति का आखिरी और सबसे अहम संस्कार है। गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद शरीर को जलाने का विधान है, लेकिन शिशु व सन्यासी को दफनाने की परंपरा है, जिसको लेकर लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? तो आइए इसे विस्तार से जानते हैं –
शिशुओं को क्यों दफनाया जाता है ?
गरुण पुराण के अनुसार, गर्भ में पल रहे शिशु या फिर 2 साल से कम उम्र के बच्चे की मृत्यु होती है, तो उसे जलाने की अनुमति नहीं है। ऐसा माना जाता कि छोटी उम्र में मृत्यु होने पर आत्मा को शरीर से लगाव नहीं रहता है, नाही उसे शरीर से कोई लाभ होता है। इस वजह से आत्मा उस शरीर को तुरंत छोड़ देती है। यही कारण है कि नवजात शिशु को जलाने की जगह दफनाया जाता है। या फिर किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।
गरुण पुराण के अनुसार, साधु-संतों को भी नहीं जलाया जाता है, क्योंकि संत पुरुषों की आत्मा शरीर में रहते हुए भी सांसारिक सुखों का त्याग कर देती है। साथ ही मोह-माया से दूर रहती है। इसके अलावा तप और पूजा-पाठ करके अपनी इंद्रियों पर विजय भी प्राप्त कर लेती है। इसी वजह से उनके शरीर को दफनाने की परंपरा है।