आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के सोम्पेता में 15 जुलाई 2019 को नल से पानी को लेकर हुए विवाद में एक महिला की जान चली गई। खबर के मुताबिक पुलिस ने बताया था कि एक सार्वजनिक नल से कुछ महिलाएं पानी भर रही थीं, इसी दौरान लाइन टूटने को लेकर महिलाओं के दो समूहों में झगड़ा हो गया। मामला इतना बढ़ गया कि तातीपुड़ी पद्मा (38 वर्ष) पर कुछ महिलाओं ने हमला बोल दिया। मारपीट में पद्मा के सिर में चोट आई और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। देश में पानी को लेकर हुई हत्या का यह कोई पहला या आखिरी मामला नहीं है। देश में हुए अपराधों का रिकॉर्ड रखने वाली सरकारी संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट क्राइम इन इंडिया के अनुसार देश में वर्ष 2017 से 2019 के बीच पानी को लेकर हुए विवाद में 232 लोगों की हत्या चुकी है। इस दौरान कुल दो हजार से ज्यादा मामले भी दर्ज किये गए। पानी को लेकर विवाद और हत्याओं के ग्राफ पर नजर डालें तो वर्ष 2017 में जहाँ पानी को लेकर कुल 432 आपराधिक मामले दर्ज किये गए तो वहीं 2018 में आंकड़ा बढ़कर 838 पर पहुँच गया। वर्ष 2019 थोड़ी गिरावट आयी और कुल 793 मामले थानों में दर्ज हुए। 2016 या उससे पहले पानी को लेकर हुए अपराध की रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है। एनसीआरबी की वर्ष 2016 की रिपोर्ट में पानी और पैसे के विवाद को लेकर सम्मिलित रुप से हुई हत्याओं का जिक्र है। रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष 850 हत्या हुई। 2017 में पानी को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में कुल 50 लोगों की हत्या हुई। 2018 में ये संख्या लगभग दोगुनी होते हुए 92 पर पहुँच गई। इसके अगले साल यानी 2019 में पानी विवाद में 90 लोगों की जान चली गई। वर्ष 2020 में आई एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में पानी विवाद के सबसे ज्यादा 352 मामले बिहार में सामने आये। 290 मामलों के साथ महाराष्ट्र दूसरे और 46 मामलों के साथ कर्नाटक तीसरे नंबर पर रहा।

2019 में हत्या के सबसे ज्यादा मामले बिहार में सामने आये। यहां 2019 में पानी विवाद में 44 लोगों की जान चली गई। इसके बाद राजस्थान में 13 और महाराष्ट्र में सात मामले दर्ज किये गये। 2018 में पानी विवाद में मौत के सबसे ज्यादा मामले गुजरात (18) में दर्ज किये थे जबकि 2019 में यहां ऐसे चार मामले ही सामने आये। एनसीआरबी ने पानी विवाद की रिपोर्ट को बड़े शहरों के हिसाब से भी तैयार किया है। 19 बड़े शहरों में से पटना में दो और पुणे में पानी विवाद को लेकर एक मामला दर्ज हुआ, जबकि हत्या का एक मात्र मामला पटना में दर्ज हुआ, बाकी सभी मामले छोटे शहरों में दर्ज हुए जबकि बड़े शहरों में पानी की किल्लत ज्यादा देखी जाती है। इससे ठीक एक साल पुरानी रिपोर्ट देखने तो NCRB के अनुसार 2018 में पानी की वजह से हुई हत्याओं के मामले में 19 बड़े शहरों में केवल पटना और दिल्ली शामिल था। पटना में पानी की वजह हत्याओं के 15 मामले दर्ज हुए थे जबकि दिल्ली में एक मामला दर्ज हुआ था।

अदालतों में लंबित पानी से जुड़े अपराधों के मामले पानी को लेकर हुए विवादों का निपटारा भी अदालतों में दूसरे मामलों की तरह अटके पड़े हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि 2017 के मामलों में 166 मामले 2018 में भी लंबित थे वहीं जाँच के बाद 21 मामले फर्जी पाये गए। चार मामलों को एफआईआर दर्ज करने लायक नहीं समझा गया। इसके अलावा 2017 तक पानी से जुड़े विवादों के 2,446 मामले अदालतों में लंबित थे, जबकि 2018 में 582 नए मामले अदालतों में पहुंचे। यानी कि 2018 तक 3028 मामले अदालतों में लंबित थे। जबकि 48 मामलों में आपस में समझौता हो गया। 27 मामलों में सजा सुनाई गई। 317 मामलों में लोग बरी हो गए। 2018 के दौरान पानी से जुड़े अपराधों में 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया, इनमें से 10 महिलाएं थीं। अब बात 2019 की करें तो इस साल कोर्ट में 2018 के 349 पेंडिंग मामले भी पहुंचे जबकि इस साल कुल 793 मामले दर्ज हुए। इस तरह कुल मामलों की संख्या 1142 हो गयी। इस वर्ष 34 मामले फर्जी पाए गये। साल 2018 के कुल 2623 और 2019 के नए 633 मामलों सहित अभी भी देश के विभिन्न अदालतों में 3266 मामलों की सुनवाई हो रही है। पांच मामलों में आपस में समझौता हो गया। 10 मामलों में सजा सुनाई गई जबकि 150 मामलों में लोग बरी हो गए। 2019 के दौरान पानी से जुड़े अपराधों में 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया, इनमें से एक महिला थी।

जल संकट के दौर में है देश?
पानी को लेकर हुए विवाद को लेकर एनसीआरबी की रिपोर्ट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पानी को लेकर संकट कितना भयावह है। कई रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती हैं। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के जरिये हाइड्रोलॉजिकल मॉडल और वाटर बैलेंस का इस्तेमाल कर सेंट्रल वाटर कमीशन (सीडब्ल्यूसी) ने 2019 में “रिअसेसमेंट ऑफ वाटर एवलेबिलिटी ऑफ वाटर बेसिन इन इंडिया यूजिंग स्पेस इनपुट्स” नाम की रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में बताया गया कि देश जल संकट के दौर से गुजर रहा है। भू-जल का अति दोहन चिंता का विषय है। रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल पानी की मात्रा 0.4 मीटर घट रही है। पानी की उपलब्धता की योजनाएं धीमी हैं जिस कारण पानी की समस्या और बढ़ रही है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में फैले सूखे और पानी की कमी के लिए कुख्यात बुंदेलखंड में डॉक्टर राकेश सिंह एनजीओ परमार्थ के माध्यम से पानी की उपलब्धता पर लम्बे समय से काम कर रहे हैं, वे गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, ” जहाँ तक एनसीआरबी के आंकड़ों की बात है तो बहुत से मामले तो दर्ज ही नहीं हो पाते। ग्रामीण भारत में पानी की समस्या और विकराल है खासकर साफ की उपलब्धता को लेकर। समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है, इस पर बहुत तेजी से काम करने की जरूरत है।” पानी बचाने की मंशाओं और योजनाओं पर सवाल उठाते हुए राकेश सिंह कहते हैं, “सरकार की योजनाएं तो हैं लेकिन वह बहुत धीमी गति से काम कर रहीं, पानी को लेकर युद्ध होगा, हमने यह सुना है, ये हत्याएं उसी कड़ी का एक हिस्सा हैं।” पानी के लिए आज से ‘कैच द रेन’ अभियान पानी के संकट से निपटने के लिए और भारत सरकार ने विश्व जल दिवस के दिन देश में ‘जल शक्ति अभियान- ‘कैच द रेन’ की शुरुआत करेगी। जलशक्ति मंत्रालय के मुताबिक ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है, जिसमें सभी आम और खास मिलकर वर्षा जल संचयन पर काम करेंगे। विश्व जल दिवस पर शुरु होने वाला ये अभियान कैच द रेन मॉनसून के पहले और बाद के समय को मिलाकर 22 मार्च से 30 नवंबर 2021 तक चलाया जाएगा।