नई दिल्ली : वैदिक समय से ही फरवरी यानी वसंत के मौसम को मोहब्बत का महीना कहा जाता है. नई पीढ़ी इस महीने में वैलेंटाइन वीक मनाती है, जहां हर दिन का अपना अलग महत्व होता है. लोग अपने चाहने वाले को तोहफा देते हैं, जीने- मरने के वादे करते हैं, एक दूसरे को खुश करते हैं और खूब प्यार करते हैं. हां वो बात और है जब हमारी-आपकी तरह के लोग जो सिंगलहुड सेलिब्रेट कर रहे हैं उनके लिए कहां दिन बदलता है, कहां हाल बदलता है.. हां कहने को तो हर साल, साल बदलता है.
खैर, वैलेंटाइन डे के बारे में क्या आपने कभी सोचा कि ये चलन कैसे-कैसे आया, 14 फरवरी को ही क्यों मनाया जाता है वैलेंटाइन डे और आखिर कौन से ‘वैलेंटाइन’. आइए बताते है पूरी कहानी.
कौन थे संत वैलेंटाइन
रोम में एक पादरी थे जिनका नाम था ‘संत वैलेंटाइन’. वे दुनिया में प्यार को बढ़ावा देने में यक़ीन रखते थे. वो प्रेम को ही अपना जीवन मानते थे और लोगों को भी प्रेम करने के लिए प्रेरित करते थे. लेकिन रोम के राजा क्लॉडियस को पादरी का ये अंदाज बिल्कुल से ना-पसंद था. रोमन शासक का मानना था कि प्रेम और विवाह से पुरूषों की बुद्धि और उनकी शक्ति पर प्रभाव पड़ता है, इस कारण से राजा के राज्य में रहने वाले सैनिक और अधिकारी विवाह नहीं कर सकते थे.
लोगों ने फिर भी की लव मैरिज
राजा के लाख विरोध के बाद भी संत वैलेंटाइन ने लोगों को प्यार करने और लव मैरिज करने के लिए प्ररित किया. देखते ही देखते संत वैलेंटाइन रोम के लव गुरु होने लगे, लोगों को उनकी बात और उनका कहा हुआ खूब जचा और नतीजा ये निकला कि राज्य में रहने वाले सैनिक और अधिकारियों ने प्यार करके और लव मैरिज करके अपने जीवन के आगे बढ़ाया.
राजा क्लॉडियस की खुद्दारी को चोट लगी और राजा को इतना गुस्सा आया कि उसने पादरी संत वैलेंटाइन को फांसी देने का ऐलान कर दिया. लिहाजा संत वैलेंटाइन को सन् 269 ईसा में 14 फरवरी के दिन ही फांसी पर चढ़ा दिया गया. ‘ऑरिया ऑफ जैकोबस डी वॉराजिन’ किताब के मुताबिक उस दिन के बाद हर साल फांसी वाले दिन यानी 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के रूप में मनाया जाने लगा.
मौत के बाद प्रेमिका को दे दी आंखें
मौत के दौरान संत वैलेंटाइन ने अपनी आंखों को जेलर की बेटी जैकोबस को अपनी आंखें दान कर दी थी और एक लेटर में लिखा था, ‘तुम्हारा वैलेंटाइन’.