राजस्थान:– न्यायपालिका और सरकार के बीच एक अभूतपूर्व टकराव की स्थिति सामने आई है। जयपुर की वाणिज्यिक अदालत के जज दिनेश कुमार गुप्ता द्वारा अडानी समूह के खिलाफ एक कड़ा फैसला सुनाए जाने के महज कुछ ही घंटों के भीतर उन्हें उनके पद से हटा दिया गया। यह मामला छत्तीसगढ़ के कोयला ब्लॉक और राजस्थान सरकार के बीच हुए करोड़ों रुपये के सौदे से जुड़ा है। द स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी दिन राजस्थान की भाजपा सरकार ने आदेश जारी कर जज गुप्ता को उनके पद से हटा दिया.
5 जुलाई को जज दिनेश कुमार गुप्ता ने अडानी समूह और राजस्थान सरकार की कंपनी (RRVUNL) के बीच हुए एक समझौते पर गंभीर सवाल उठाए थे:
1,400 करोड़ की अवैध वसूली: कोर्ट ने पाया कि अडानी समूह के नेतृत्व वाले संयुक्त उपक्रम (परसा केंते कोलियरीज लिमिटेड) ने अपनी गलती (रेलवे साइडिंग न बनाना) को छिपाने के लिए सड़क परिवहन की लागत के रूप में 1,400 करोड़ रुपये से अधिक की राशि सरकारी खजाने से वसूली।
50 लाख का जुर्माना: जज इस ‘अनुचित लाभ’ के लिए कंपनी पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
CAG ऑडिट का निर्देश: सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि जज ने राज्य सरकार को इस पूरे सौदे की CAG (कैग) से ऑडिट कराने का निर्देश दिया।
जिस दिन (5 जुलाई) यह फैसला आया, उसी दिन राजस्थान की भाजपा सरकार और हाईकोर्ट ने त्वरित कार्रवाई की:
पद से हटाना: राज्य के विधि विभाग ने आदेश जारी कर जज गुप्ता को वाणिज्यिक अदालत से हटाकर वापस हाईकोर्ट ‘रिपैट्रिएट’ कर दिया।
तबादला: हाईकोर्ट ने उसी शाम उन्हें जयपुर से 200 किलोमीटर दूर ब्यावर जिले में तैनात कर दिया।
आदेश पर रोक: महज दो हफ्ते बाद, राजस्थान हाईकोर्ट ने जज गुप्ता के फैसले (जुर्माना और CAG ऑडिट) पर अंतरिम रोक लगा दी।
विवाद की जड़: हसदेव अरण्य और कोयला खनन
यह मामला साल 2007 से शुरू होता है, जो आज देश के सबसे विवादित खनन समझौतों में से एक बन चुका है।
JV का खेल: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में कोयला ब्लॉक राजस्थान सरकार को मिला था, लेकिन इसके खनन के लिए अडानी समूह के साथ एक जॉइंट वेंचर बनाया गया, जिसमें अडानी की हिस्सेदारी 74% थी।
रेलवे साइडिंग बनाम सड़क: समझौते के तहत कोयला लाने के लिए रेलवे ट्रैक बनाना अडानी की कंपनी की जिम्मेदारी थी। जब कंपनी ट्रैक नहीं बना पाई, तो उसने कोयले को सड़क से ढोया और इसका अतिरिक्त खर्च (1,400 करोड़) राजस्थान सरकार पर डाल दिया।
ब्याज का विवाद: विवाद तब और बढ़ा जब अडानी समूह ने इस भुगतान में हुई देरी के लिए ब्याज की भी मांग कर दी, जिसे लेकर मामला कोर्ट पहुंचा।
फिलहाल जज गुप्ता का आदेश प्रभावी नहीं है क्योंकि हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 के अंतिम सप्ताह में होनी तय है। तब तक यह मामला न्यायिक गलियारों में चर्चा का विषय बना रहेगा कि क्या एक जज को स्वतंत्र फैसला सुनाने की सजा मिली?
