विदेश:– 28 अक्टूबर को भारतीय शेयर बाजार में एक चौंकाने वाला नजरिया देखने को मिला जब विदेशी संस्थागत निवेशकों ने करीब ₹10,339.80 करोड़ की नेट खरीदारी की. यह आंकड़ा 26 जून के बाद किसी एक दिन में FII द्वारा की गई सबसे अधिक नेट खरीदारी है. साथ ही इस महीने अब तक उन्होंने लगभग ₹10,040 करोड़ का निवेश किया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ एक-दिन की खरीदारी है या बाजार में बड़ा ट्रेंड बदलने वाला है?
क्या है कारण?
माना जा रहा है कि इस खरीदारी के पीछे तीन प्रमुख कारण हैं. मार्केट विशेषज्ञों का मानना है कि पहला कारण, चुनिंदा शेयरों में कुछ बड़ी ‘ब्लॉक’ खरीदारी हई थीं. दूसरा, एक्सपायरी वाले दिन जून एक्सपायरी की तर्ज पर पोजीशन ली गई, लेकिन अगले दिन बिकवाली देखने को मिली थी. तीसरा, अक्टूबर सीरीज में FII के लॉन्ग-शॉर्ट अनुपात में सुधार देखा गया.
इन संकेतों से यह लग रहा है कि विदेशी निवेशक फिर से भारत के शेयर बाजार की ओर सक्रिय हो रहे हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ एक फुर्तीली चाल है या वास्तव में ट्रेंड में एक बदलाव?
क्या हो रहा है बदलाव?
फेड की दरों में कटौती की उम्मीदें अमेरिकी केंद्रीय बैंक की 28-29 अक्टूबर की बैठक से पहले उम्मीद थी कि वे 25 बेसिस पॉइंट दरें कम कर सकते हैं. यदि ऐसा हुआ, तो डॉलर कमजोर हो सकता है और उभरते बाजारों- विशेषकर भारत-में शेयर तथा धातुओं को फायदा हो सकता है. इस तरह की वैश्विक परिस्थिति विदेशी निवेशकों को भारत की ओर पुनः आकर्षित कर सकती है.
रुपये बनाम डॉलर की स्थिति पिछले एक-दो महीनों में अमेरिकी डॉलर में मजबूती आई है. इसके चलते कई मुद्राएं दबाव में रही हैं, लेकिन भारतीय रुपया भी कुछ हद तक मजबूत हुआ है. जब रुपया स्थिर या मजबूत हो, तो विदेशी निवेशकों को भारत की ओर झुकाव बढ़ सकता है क्योंकि उनके लिए मुद्रा जोखिम कम होता है.
एक पल भर का कमाल है या स्थायी ट्रेंड?
यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि यह बदलाव पूरी तरह स्थायी है, लेकिन संभावनाएं बढ़ रही हैं. बाजार विशेषज्ञों ने सचेत किया है कि पिछले अनुभवों में एक्सपायरी दिन के आसपास दिखने वाली विदेशी खरीदारी अक्सर अगले दिन बिकवाली में बदल जाती रही है. यानी यह ‘एक-दिन का जलवा’ भी हो सकता है.
लेकिन यदि कुछ बातें सही हुईं, तो यह ट्रेंड में बदलाव की ओर इशारा कर सकता है जैसे, विदेशी निवेशकों द्वारा नियमित और बढ़ती हुई शुद्ध खरीदारी. आय एवं कॉरपोरेट प्रदर्शन में सुधार जो निरंतर उम्मीदों को समर्थन दे, अमेरिकी ब्याज दरों में कटौती, डॉलर की कमजोरी, उभरते बाजारों की वापसी और भारतीय अर्थव्यवस्था, रुपए तथा नीतिगत माहौल में स्थिरता।
