
छत्तीसगढ़ : बच्चे तो स्कूल रोजाना जाते हैं पर शिक्षक ही रोजाना नहीं आते हैं। बच्चों की इस स्थिति को देखकर मध्याह्न भोजन पकाने वाला रसोईयां ना सिर्फ बच्चों को भोजन पकाकर दे रहा है, बल्कि शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य के लिए स्कूल आ रहे हैं बच्चों को शिक्षा भी दे रहा है। सरकारी शिक्षा व्यवस्था की यह तस्वीर ओडिशा सीमा से लगे प्राथमिक शाला सागजोर की है।
प्राथमिक शाला सागजोर फरसाबहार ब्लाक से 30 किलोमीटर दूर ओडिशा बार्डर से लगा गांव है। इस गांव में एक ही कैंपस में प्राइमरी व मिडिल स्कूल संचालित है। प्राइमरी स्कूल में बच्चों की कुल दर्ज संख्या 53 है। इतनी अच्छी दर्ज संख्या वाले स्कूल में पदस्थ शिक्षक लापरवाह हैं।
यहां दो शिक्षक प्रधानपाठक जितेन्द्र गुप्ता और शिक्षक शंकर राम नायक पदस्थ हैं। अभिभावकों की सूचना पर मंगलवार को जब यहां भास्कर की टीम वहां पहुंची तो पाया कि मंगलवार को दोनों ही शिक्षक नहीं पहुंचे थे। मध्याह्न भेाजन बनाने के दौरान ही रसोईकक्ष में मिडिल स्कूल का रसोइयां नरेश ध्रुव बच्चों की कॉपी चेक कर रहा था और उन्हें गलतियां सुधारने के लिए बोल रहा था।
सभी बच्चे अपने नोटबुक्स लेकर उसे चेक कराने के लिए रसोइयां नरेश ध्रुव के पास गए थे।टीम ने पड़ताल की तो पता चला कि इस स्कूल में पदस्थ प्रधानपाठक शिक्षा विभाग के संकुल ग्रुप में दो दिन के आकस्मिक अवकाश का एप्लीकेशन डालकर गायब हैं, वहीं दूसरे शिक्षक शंकर राम नायक का कुछ अता-पता नहीं था।
कैंपस के अन्य शिक्षकों ने बताया कि शंकर राम नायक दुलदुला के हैं और दुलदुला से आना-जाना करते हैं। बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि शिक्षक नायक के दर्शन कभी-कभार ही होते हैं। वे सप्ताह में एक दो दिन पहुंच जाएं तो बहुत हैं और जिस दिन आते हैं उस दिन में देर से स्कूल पहुंचते हैं और जल्दी चले जाते हैं।
हैरानी की बात है कि प्रधानपाठक ने छुट्टी के लिए शिक्षा विभाग के वाट्सएप ग्रुप में डेंगू बुखार होने के नाम पर छुट्टी मांगी है। इसके बावजूद शिक्षा विभाग हरकत में नहीं आया। यदि विभाग बच्चों को लेकर इतना फिक्रमंद होता तो शिक्षक के डेंगू ग्रस्त होने की सूचना मिलते ही उस इलाके में मेडिकल कैंप लगवता और अधिकारी स्कूल पहुंचकर जांच करते, क्योंकि जिले में अब तक डेंगू के एक भी केस नहीं मिले हैं।
शिक्षक ने भी डेंगू के नाम पर सिर्फ दो दिन की छुट्टी की मांग की है।स्कूलों के कुशल संचालन के लिए जिला, फिर विकासखंड इसके बाद संकुल स्तर पर मॉनिटरिंग की व्यवस्था है। कुछ स्कूलों को मिलाकर एक संकुल बनाया गया है और शिक्षकों में से ही संकुल प्रभारी नियुक्त किए हैं।
संकुल प्रभारियों को शिक्षा के दायित्व से मुक्त कर सिर्फ स्कूलों की मॉनिटरिंग का जिम्मा सौंपा है, पर इस जिम्मेदारी को भी संकुल समन्वयक नहीं निभा रहे हैं। बताया जाता है कि संकुल समन्वयक कभी भी इस इलाके में जांच के लिए पहुंचते ही नहीं है। यही वजह है कि शिक्षक अपने हिसाब से स्कूल आते-जाते हैं।