नई दिल्ली:– स्मार्ट प्रीपेड मीटर की रीडिंग को लेकर उपभोक्ता लगातार सवाल उठा रहे हैं। कई उपभोक्ता टेस्ट मीटर लगाने के लिए आवेदन कर रहे हैं, लेकिन सुनवाई में देरी आम बात बन चुकी है। जो आवेदन स्वीकार भी हो रहे हैं, उनमें एक और अजीब स्थिति है टेस्ट मीटर लगाने का काम उन्हीं कंपनियों को दिया जा रहा है, जिन पर ही गड़बड़ी का शक है। यानी जिन मीटरों पर उपभोक्ता भरोसा नहीं कर पा रहे, उनकी जांच भी वही कंपनियां कर रही हैं।
उत्तर प्रदेश में पावर कॉरपोरेशन पुराने मीटर हटाकर स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगा रहा है। मीटरों की सीधी खरीद नहीं की गई, बल्कि निजी कंपनियों को यह काम ठेके पर सौंपा गया। इन्हीं कंपनियों को नए कनेक्शन पर भी स्मार्ट मीटर लगाने के आदेश हैं। चूंकि कॉरपोरेशन ने खुद टेस्ट मीटर नहीं खरीदे, इसलिए उपभोक्ताओं के आवेदन पर जांच के लिए वही कंपनियां दोबारा मीटर लगा रही हैं जो पहले से ही मीटर सप्लाई कर रही हैं। इससे पूरे सिस्टम की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
सामान्यत: जब कॉरपोरेशन मीटर खरीदता है, तो हर खेप से कुछ मीटर टेस्टिंग के लिए भेजे जाते हैं। एनएबीएल लैब से प्रमाणन के बाद इन्हें सीलपैक कर वापस भेजा जाता है और डिवीजनवार स्टोर में रखा जाता है ताकि जरूरत पड़ने पर इन्हें जांच मीटर के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। लेकिन इस मामले में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई।
नियम के मुताबिक, स्मार्ट मीटर लगाने के दौरान 5 प्रतिशत पुराने मीटर उपभोक्ताओं के घरों पर रहने दिए जाने थे ताकि नए और पुराने मीटर की रीडिंग का मिलान किया जा सके। इसका उद्देश्य पारदर्शिता और भरोसा बढ़ाना था। लेकिन अब तक न तो इन चेक मीटरों की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है और न ही किसी औपचारिक जांच का ब्योरा साझा किया गया है।
नतीजा यह है कि उपभोक्ताओं की शंका जस की तस बनी हुई है, जबकि पावर कॉरपोरेशन और ठेकेदार कंपनियों के बीच जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने का खेल जारी है।
