
चेन्नई : सितंबर 13। मद्रास हाईकोर्ट की एक टिप्पणी चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल, सोमवार को हाईकोर्ट ने तमिल भाषा को ‘ईश्वर की भाषा’ बताते हुए देशभर के मंदिरों में अभिषेक अज़वार और नयनमार जैसे संतों द्वारा रचित तमिल भजनों का गायन करने की बात कही।जस्टिस एन किरुबाकरण और जस्टिस बी पुगालेंधी की बेंच ने हाल के एक आदेश में कहा कि हमारे देश में अभी तक संस्कृत को ही ईश्वर की भाषा बताया जाता है, लेकिन सच ये है कि लोगों के द्वारा बोली जाने वाली हर भाषा ईश्वर की भाषा है।
निस्संदेह संस्कृत एक प्राचीन भाषा है- हाईकोर्ट
बेंच ने कहा कि अलग-अलग देशों और धर्मों में अलग-अलग मान्यताएं हैं, जो पूजा के स्थान, संस्कृति और धर्म के अनुसार बदलती रहती हैं। बेंच ने आगे कहा कि निस्संदेह, संस्कृत एक प्राचीन भाषा है, जिसमें विशाल प्राचीन साहित्य है। विश्वास इस तरह फैलाया जाता है कि अगर संस्कृत वेदों का पाठ किया जाता है, तो भगवान भक्तों की प्रार्थना सुनेंगे।
किस मामले पर सुनवाई कर रहा था हाईकोर्ट
आपको बता दें कि हाईकोर्ट की ये बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तमिलनाडु के करूर जिले में एक मंदिर में तिरुमुराईकल, तमिल सैवा मंतरम और संत अमरावती अतरांगरई करूरर के पाठ के साथ अभिषेक करने का निर्देश सरकारी अधिकारियों को देने की मांग की गई है। साथ ही दौरान शैव मंथिराम (भजन) और संत अमरावती अतरंगराय करूरर के गीत का गायन कराने की भी मांग की गई।
याचिका पर कोर्ट की टिप्पणी
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, “तमिल न केवल दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है बल्कि ‘देवताओं की भाषा’ भी है। ऐसा माना जाता है कि तमिल भाषा का जन्म पेलेट ड्रम से हुआ है जो भगवान शिव के नृत्य करते समय गिरा था। एक अन्य विचारधारा यह है कि भगवान मुरुगा ने तमिल भाषा की रचना की।”