मध्य प्रदेश:- मैहर जिले में आज भी एक चमत्कारी और रहस्यमयी शक्तिपीठ मौजूद है, जिसे मैहर के नाम से जाना जाता है. इस अति प्राचीन मंदिर से ही इस जिले को नाम मिला. मान्यता है कि मां शारदा के इस अति प्राचीन मंदिर में आज भी आल्हा आते हैं और अगले दिन पट खुलने पर माता की पूजा के प्रमाण यहां मिलते हैं. ब्रह्म मुहूर्त में यहां ऐसा हर रोज होता है कि पुजारी द्वारा मंदिर के पट खोलने पर मां अलग रूप में नजर आती हैं. इतना ही नहीं मैहर वाली माता की पूजा पुजारी द्वारा किए जाने के पहले ही यहां पूजा हो जाती है. कहते हैं कि ये आल्हा करते हैं.
कौन हैं आल्हा, जो मैहर में आज भी आते हैं?
मैहर के पुजारी नितिन महाराज कहते हैं, ” मैहर में मां शारदा देवी के दो परम भक्त हुआ करते थे, जिनके नाम थे आल्हा-ऊदल. ये बेहद ताकतवर योद्धा थे, जिन्हें मां ने अमरता का वरदान दिया था. दोनों सगे भाई आल्हा-ऊदल ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार आल्हखंड के नायक थे. आल्हा ने जब पाया कि ये मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए 12 सालों तक घोर तप किया, जिसके बाद मां शारदा ने प्रसन्न होकर आल्हा को अमरता का वरदान दिया. मान्यता है कि तभी से आल्हा आज भी मां शारदा देवी की प्रथम पूजा अर्चना करने यहां आते हैं.
मां सती का यहां गिरा था हार, नाम हुआ मैहर
मैहर मां शारदा देवी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है, जो पूरे देश भर में एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक राजा दक्ष प्रजापति हुआ करते थे, जिनकी पुत्री माता सती थीं. सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन राजा दक्ष को पुत्री की यह इच्छा मंजूर नहीं थी. इसके बावजूद माता सती ने घोर तप कर भगवान शिव को प्राप्त किया और उनसे विवाह किया. भगवान शिव को लेकर मन में द्वेष रखते हुए राजा दक्ष ने अपने महल में एक बड़ा यज्ञ करवाया और उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, ईंद्र सहित सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया. इसपर सती के सवाल पूछने पर उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव को अपशब्द कह डाले. इससे क्रोधित होकर सती ने अपने प्राणों की आहुति दे दी.
जब भगवान शिव को सती के प्राण त्यागने की बात पता चली तो भयानक क्रोध के साथ उनका तीसरा नेत्र खुल गया और ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई. शिव मां सती के प्राणहीन शरीर को लेकर घोर विलाप करने लगे, जिससे प्रलयकारी परिस्थितियां बन गईं. पूरे ब्रह्मांड की भलाई और शिव की क्रोधाग्नि समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने उन्हीं से प्रेरणा लेकर सुदर्शन चक्र चलाया और मां सती का शरीर 51 भागों में विभाजित होकर पृथ्वी में अलग-अलग स्थानों पर गिरा. जहां-जहां ये भाग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ. जहां मां सति का हार गिरा वह स्थान मैहर शक्तिपीठ के रूप में जाना गया.
मैहर नाम का क्या अर्थ है?
पुराणों के मुताबिक, ” जहां मां सति का हार गिरा उस स्थान को मैहर शक्तपीठ कहा गया है.” मैहर का नाम पहले ‘माई का हार’ था, जिसके बाद अप्रभंश होकर मैहर नाम पड़ गया. मैहर वाली मां शारदा को कष्ट हरने वाले मां के रूप में भी जाना जाता है और ये विश्वप्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है.
कहां है मैहर मंदिर? कैसे जा सकते हैं मैहर?
मैहर का मां शारदा मंदिर मध्य प्रदेश के मैहर जिले में स्थित है. मां शारदा देवी का ये मंदिर विंध्य पर्वत के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है. यहां पहुंचने के लिए आप सीधे मैहर रेलवे स्टेशन या सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं. इसके अलावा यहां से नजदीकी एयरपोर्ट जबलपुर और रीवा हैं. इस मंदिर में तकरीबन 11 सौ सीढ़ियां चढ़कर मां के दर्शन के लिए जाना पड़ता है, इसके साथ ही यहां त्रिकूट पर्वत तक उड़न खटोला भी चलता है जिससे बच्चे, बड़े, बूढ़े, बुजुर्ग सहित दिव्यांग व बीमार भी मां के आसानी से दर्शन कर सकते हैं
इस शक्तिपीठ पर चैत्र एवं शारदीय दोनों नवरात्रि के 9 दिनों तक भक्तों का मेला लगता है.
मैहर में आल्हा के दर्शन की भी मान्यता
मां शारदा देवी के परम भक्त आल्हा को अमरता का वरदान प्राप्त है. ऐसे में आल्हा का भी मंदिर माता के मंदिर के ठीक पीछे की ओर बना हुआ है. ऐसी मान्यता है कि मां शारदा देवी के दर्शन के बाद श्रद्धालु आल्हा मंदिर में पहुंच कर आल्हा देव के दर्शन करते हैं. मान्यता है कि आल्हा के दर्शन के साथ माता के दर्शन पूर्ण माने जाते हैं. आल्हा मंदिर के पास आपको आल्हा उद्यान, आल्हा अखड़ा, आल्हा तालाब सहित अनेकों जगह यहां पर देखने को मिलती हैं.
हर दिन अलग रूप में नजर आती हैं मैहर वाली माता
मैहर में मां शारदा देवी का अद्भुत श्रृंगार किया जाता है, सोमवार को मां शारदा का सफेद रंग के वस्त्र, मंगलवार को नारंगी, बुधवार को हरे, गुरुवार को पीले, शुक्रवार को नीले व शनिवार को काले और रविवार को लाल रंग के वस्त्र से माई का अद्भुत श्रृंगार किया जाता है.