मध्य प्रदेश :– नर्मदापुरम जिला स्थित पचमढ़ी के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (STR) के आसपास लागू किए गए ‘इको सेंसिटिव जोन’ (ESZ) और प्रस्तावित जोनल मास्टर प्लान के विरोध में पचमढ़ी के स्थानीय निवासियों और ‘पचमढ़ी बचाओ संघर्ष समिति’ ने निर्णायक लड़ाई का ऐलान कर दिया है। ग्रामीणों और समिति का आरोप है कि प्रशासन ने स्थानीय परिस्थितियों की अनदेखी करते हुए ऐसे नियम थोपे हैं, जिससे हजारों लोगों की रोजी-रोटी और संवैधानिक अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है।
मुख्य आपत्तियां और विवाद के कारण:
संघर्ष समिति और ग्राम सभा द्वारा कलेक्टर एवं डायरेक्टर (सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान) को सौंपे गए ज्ञापनों में कई गंभीर विसंगतियां गिनाई गई हैं।
भाषा की बाधा: ग्रामीणों का कहना है कि ESZ से संबंधित अधिसूचना और मास्टर प्लान केवल अंग्रेजी भाषा में जारी किए गए हैं। क्षेत्र की अधिकांश आबादी जनजातीय और ग्रामीण है, जिन्हें अंग्रेजी समझ नहीं आती। मांग की गई है कि इसे स्थानीय हिंदी भाषा में प्रकाशित कर पुनः दावे-आपत्तियां बुलाई जाएं।
दूरी का विस्तार: 2017 की अधिसूचना में ESZ का विस्तार केवल 100 मीटर तक स्पष्ट था, लेकिन अब जोनल प्लान में इसे बढ़ाकर 2 किलोमीटर तक दिखाया जा रहा है, जो नियमों के विरुद्ध है।
रोजगार पर संकट: जोनल प्लान में होटल और रिसॉर्ट निर्माण पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं। ग्रामीणों का तर्क है कि बंदरों और जंगली सूअरों के आतंक के कारण खेती अब लाभदायक नहीं रही। ऐसे में पर्यटन ही रोजगार का एकमात्र जरिया है, जिसे बंद करना विकास को बाधित करना है।
प्रचार-प्रसार का अभाव: आरोप है कि 2017 की अधिसूचना बिना किसी उचित प्रचार-प्रसार के जारी कर दी गई, जिससे ग्रामीण समय पर अपनी आपत्ति दर्ज नहीं करा सके।
आंदोलन की रूपरेखा
‘पचमढ़ी बचाओ संघर्ष समिति’ ने अपनी मांगों के समर्थन में तीन दिवसीय शांतिपूर्ण आंदोलन की घोषणा की है:
25 दिसंबर: दोपहर 3:00 से 5:00 बजे तक जवाहर चौक पर धरना।
26 दिसंबर: दोपहर 3:00 से 6:00 बजे तक पचमढ़ी बाजार बंद।
26 दिसंबर: शाम 5:00 बजे जटाशंकर तिराहा पर धरना एवं पुतला दहन।
ग्रामीणों ने प्रशासन के सामने स्पष्ट मांगें रखी हैं:
ESZ की सीमा का पुनर्निर्धारण स्थानीय जनहित को ध्यान में रखकर किया जाए।
मास्टर प्लान की विसंगतियों को तत्काल दूर किया जाए।
पचमढ़ी के विकास और स्थानीय नागरिकों के हितों की रक्षा सुनिश्चित हो।
राजस्व ग्रामों को ESZ की सीमाओं से पृथक रखा जाए और पशुपालन, कुटीर उद्योग व पर्यावरण अनुकूल उद्योगों को अनुमति दी जाए।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि प्रशासन ने इन मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार नहीं किया, तो यह आंदोलन और उग्र रूप ले सकता है।
