छत्तीसगढ़ :– देशभर में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। इसी कड़ी में धर्मनगरी डोंगरगढ़ की पवित्र धरती पर भी इस पर्व ने भक्ति और आस्था का अद्भुत संगम रचा। प्राचीन महावीर तालाब के घाटों पर हजारों श्रद्धालु एकत्र हुए, जहां व्रती महिलाओं ने पारंपरिक विधि-विधान के साथ अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया।
दीपों और गीतों से नहाया आस्था का माहौल
शाम होते ही घाटों पर दीयों की लौ और छठ गीतों की मधुर गूंज ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। हर ओर पारंपरिक वेशभूषा में महिलाएं सूप और दऊरा में ठेकुआ, फल, नारियल और प्रसाद सजाकर पहुंचीं। “उठा सूर्य भगवान, अरघे के बेरिया” जैसे लोकगीतों ने हवा में भक्ति का रंग घोल दिया। तालाब का हर कोना श्रद्धा और आस्था से जगमगा उठा।
प्रशासन की ओर से चाक-चौबंद इंतजाम
नगर पालिका परिषद डोंगरगढ़ और पुलिस प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष प्रबंध किए गए थे। घाटों की सफाई, लाइटिंग, सुरक्षा व्यवस्था और यातायात नियंत्रण जैसी तैयारियों ने आयोजन को सुचारू बनाया। कल सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पण के साथ ही चार दिवसीय इस महापर्व का समापन होगा।
छठ महापर्व की पौराणिक कथा
लोकमान्यता के अनुसार, छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल से जुड़ा है। कहा जाता है कि कर्ण ने सूर्य देव की कठोर तपस्या की थी, जिससे उन्हें दिव्य कवच और कुण्डल प्राप्त हुए। वहीं, कुंती और द्रौपदी ने भी सूर्य देव की आराधना कर संतान और समृद्धि की कामना की थी। छठी मैया, जिन्हें ऊषा देवी या प्रकृति की छठवीं शक्ति कहा जाता है, सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं — जिनकी पूजा से संतान सुख, आरोग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
 
		