नई दिल्ली:– भारत में अरावली महज पहाड़ नहीं है, ये उत्तर भारत की सांस है। इन दिनों पर्यावरण कार्यकर्ता चेतावनी जारी कर रहे हैं कि ‘इन सांसों पर गहरा संकट मंडरा’ रहा है। इस सबकी शुरूआत हुई है अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा सामने आने के बाद से। जानिए आखिर क्या है मामला? साथ ही विस्तार से समझिए कि उत्तर भारत के लिए ये पहाड़ियां इतनी जरूरी कैसे हैं कि इनके न रहने से जीवन पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे?
आखिर क्या है मामला?
सबसे पहले समझ लीजिए कि आखिर मामला क्या है। दरअसल नई परिभाषा में कहा गया है कि उन्हीं भू-आकृति को अरावली श्रृंखला में शामिल किया जाएगा, जो जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंची होगी। जानकारों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा- ऐसा करने से करीब 90 फीसदी पहाड़ियां सरंक्षण के दायरे से बाहर चली जाएंगी। इसके बाद यहां कोई रोक-टोक नहीं होगी, जिससे खनन, कंस्ट्रक्शन, पेड़ों की कटाई और पर्यावरण को क्षति पहुंचानी शुरू हो जाएगी।
उत्तर भारत की सांस, रीढ़ और सुरक्षा कवच
अरावली पर्वत श्रृंखला दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह गुजरात से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है। ये पहाड़ियां केवल ‘सांस’ ही नहीं ‘सुरक्षा कवच’ और ‘रीढ़’ भी हैं, जानिए क्यों और कैसे?
दरअसल अरावली पर्वत श्रृंखला कोई साधारण पहाड़ नहीं है। यह उत्तर भारत की प्राकृतिक ढाल, जल-जीवन का आधार और पर्यावरणीय संतुलन की रीढ़ है। अगर अरावली नहीं रही, तो इसका असर सिर्फ राजस्थान, हरियाणा या दिल्ली तक सीमित नहीं होगा, बल्कि अरबों जीव-जंतुओं, पौधों और इंसानों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
पांच बिंदुओं में समझिए अरावली की जरूरत
रेगिस्तान को फैलने से रोकती हैं।
मानसून और बारिश के पैटर्न को भी निर्धारित और तय करने में रोल निभाती हैं।
ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करती हैं।
प्रदूषण और धूल को उत्तर भारत की तरफ बढ़ने से रोकती हैं।
जैव विविधता की भरमार है यानी हजारों-लाखों तरह के पेड़-पौधे और जीव-जंतु पाए जाते हैं।
अगर पहाड़ियों पर अवैध खनन, कंस्ट्रक्शन और जंगलों की कटाई शुरू हुई तो धीरे-धीरे उत्तर भारत में कई तरह के संकट के बादल मंडराने लगेंगे।
- रेगिस्तान पर नहीं लग पाएगी लगाम
अरावली ‘थार रेगिस्तान’ को उत्तर और पूर्व की ओर बढ़ने से रोकता है। इसके नष्ट होने से उत्तर भारत भी रेगिस्तानी हो जाएगा। क्योंकि ये पहाड़ियां आखिरी दीवार हैं, जो इसे आगे बढ़ने से रोकती हैं। जमीन बंजर होने लगेगी। खेती करना मुश्किल हो जाएगा और धीरे-धीरे सूखा अपनी गिरफ्त में ले लेगा।
2- बेमौसम बारिश और बढ़ेगा सूखे का सिलसिला
अरावली हवा की दिशा को प्रभावित करती है। इससे राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बारिश संभव होती है। सूखा और बाढ़ का संतुलन बना रहता है। अगर ये पहाड़ियां नष्ट या कमजोर हुईं तो बेमौसम बरसात और सूखा पड़ेगा। इसका सीधा-सीधा और सबसे ज्यादा नुकसान गरीब और कमजोर किसानों को होगा।
3- अरावली नहीं, तो पानी नहीं?
वैज्ञानिक नजरिए से देखें, तो अरावली की चट्टानें प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करती हैं। ये बारिश का पानी रोकती हैं। धीरे-धीरे ज़मीन के भीतर पहुंचाती हैं। इससे दिल्ली-NCR, हरियाणा और राजस्थान के कई इलाकों में ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने में मदद मिलती है। अब अगर ये संपजनुमा पहाड़ियां ही नष्ट होने लगेंगी, तो उत्तर भारत को पानी के संकट से कोई नहीं बचा पाएगा।
4- करोड़ों जिंदगियों पर मंडराएगा सांसों पर संकट
दिल्ली की हवा में जो धूल और प्रदूषण आता है, उसका बड़ा हिस्सा पश्चिमी दिशा से आता है। अरावली पहाड़ियां इन धूल भरी आंधियों को रोकती हैं। ये PM10 और प्रदूषक कणों को सीमित करती हैं। अगर अरावली नष्ट हुई, तो AQI और खराब होगा। सांस की बीमारियां बढ़ेंगी। बच्चों और बुजुर्गों का जीवन और कठिन होगा
5- पेड़-पौधे और जीव जंतु भी खतरे में
आखिरी में बात करें तो अरावली पहाड़ियों पर हजारों-लाखों किस्म के पेड़-पौधे और जीव-जंतु पाए जाते हैं। यहां सैकड़ों प्रजाति के पौधे, पक्षी, स्तनधारी जीव और कीट-पतंगे रहते हैं। अगर ये पहाड़ियां नुकसान झेलेंगी तो इससे जुड़ा पूरा इकोसिस्टम हिल जाएगा। सबसे बड़ी समस्या फूड चेन को लेकर आएगी। क्योंकि जंगल कटेंगे, आवास खत्म होंगे तो कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी और फूड चेन का क्रम भंग हो जाएगा। क्योंकि इंसान भी इसी फूड चेन का हिस्सा है।
