नई दिल्ली:- 1951-52 में पहली बार देश में लोकसभा चुनाव आयोजित किए थे। उस वक्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी थी। बता दें कि पहले लोकसभा चुनाव से ही चुनाव चिह्नों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी एक वजह यह है कि उस वक्त देश में साक्षरता बेहद कम थी। ऐसे में लोगों के लिए चिह्न के माध्यम से प्रत्याशी को पहचानना आसान था
कैसे कांग्रेस को मिला ‘हाथ का पंजा’ निशान?
देश के पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव चिह्न दो बलों की जोड़ी थी। जनसंघ को दीपक चुनाव चिह्न मिला था। भाजपा और कांग्रेस के चुनाव चिह्न तीन-तीन बार बदल चुके हैं। 1952 से 1969 तक दो बैलों की जोड़ी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव चिह्न रहा है।
मगर इंदिरा गांधी को कांग्रेस ने 12 नवंबर 1969 को पार्टी से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद इंदिरा ने कांग्रेस के नाम से नए दल का गठन किया। पार्टी को ‘दूध पीता बछड़ा’ चुनाव चिह्न मिला। 1971 से 1977 तक यही चुनाव चिह्न रहा। 1977 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेस नाम से नई पार्टी बनाई। इसके बाद उन्होंने हाथ के पंजे को अपना चुनाव चिह्न बनाया। तब से कांग्रेस का यही चुनाव निशान है।
जनसंघ से भाजपा तक: तीन बार बदला चुनाव चिह्न
21 अक्टूबर 1951 को अखिल भारतीय जनसंघ का गठन किया गया था। दिल्ली के कन्या माध्यमिक विद्यालय परिसर में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजन किया गया था। इसमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में अखिल भारतीय जनसंघ की नींव रखी गई थी।
जनसंघ का झंडा आयताकार भगवा ध्वज था। इसी ध्वज पर अंकित दीपक को चुनाव चिह्न की मंजूरी मिली। आपातकाल के बाद 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ। इस वक्त नया चुनाव ‘हलधर किसान’ मिला। इसके ठीक तीन साल बाद छह अप्रैल 1980 को भाजपा की स्थापना हुई। इसके बाद भाजपा को ‘कमल चुनाव’ चिह्न मिला।
इन दलों को मिला था ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा
देश के पहले लोकसभा चुनाव में 29 राजनीतिक दलों ने ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा मांगा था। हालांकि इनमें से केवल 14 को ही यह दर्जा दिया गया था। मगर चुनाव नतीजे आने पर सिर्फ चार दल ही ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा बचाने में सफल रहे।
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाने वाले दल
1- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
2- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
3- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
4- अखिल भारतीय जनसंघ