नई दिल्ली : साल 2022 में हैदराबाद के गांधी अस्पताल में बिजली कटौती के बाद 21 मरीजों की मौत हुई। इसी साल नोएडा जिला अस्पताल में बत्ती गुल होने से मरीजों और डॉक्टरों को परेशानी हुई।
बिजली कटौती की वजह से सरकारी कामकाज या फिर अस्पतालों में भर्ती मरीजों के इलाज में आने वाली बाधा जल्द दूर होगी। सरकार ने इन सभी इमारतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का फैसला किया है, जिसकी शुरुआत सबसे पहले केंद्र सरकार ने अपने मंत्रालय और उनके अधीन सरकारी इमारतों से की है। इसमें दिल्ली एम्स, सफदरजंग अस्पताल, डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल भी शामिल हैं। सभी मंत्रालय के लिए सरकार ने पांच अलग-अलग एजेंसियों को जिम्मेदारी सौंपी है जो इस साल के आखिर तक काम पूरा करेगीं। वहीं दूसरी ओर राज्यों ने भी इस पर संज्ञान लिया है।
हालांकि, इस काम के लिए राज्यों ने डेडलाइन तय नहीं की है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर के एम्स और दिल्ली के पांच अस्पतालों को सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का आदेश दिया है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जिस तरह कोरोना महामारी में ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित किए गए उसी तरह सौर ऊर्जा संयंत्र को लेकर भी काम हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2024 तक डेडलाइन सभी मंत्रालय को दी है।
इसलिए है जरूरी
दरअसल, बिजली आपूर्ति का प्रभाव सरकारी अस्पतालों पर काफी गंभीर है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण का एक अध्ययन बताता है कि देश के अस्पतालों में प्रति बिस्तर औसत बिजली खपत लगभग 200 से 300 किलोवाट प्रति घंटा है। इस हिसाब से देखें तो 30 बिस्तर के एक अस्पताल की मासिक बिजली खपत छह से नौ हजार किलोवाट प्रति घंटा तक हो सकती है। हालांकि यह अनुमान विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर अलग भी हो सकता है।
दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक असर
साल 2022 में हैदराबाद के गांधी अस्पताल में बिजली कटौती के बाद 21 मरीजों की मौत हुई। इसी साल नोएडा जिला अस्पताल में बत्ती गुल होने से मरीजों और डॉक्टरों को परेशानी हुई। दिल्ली के रोहिणी स्थित डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर अस्पताल में लंबे समय तक बिजली गुल रही, जिससे चिकित्सा सेवाएं बाधित हुईं।
प्राइवेट अस्पतालों में नहीं होती परेशानी
साल 2022 में शोधकर्ताओं ने भारत में संस्थागत प्रसूति पर ऊर्जा की कमी के प्रभाव पर अध्ययन किया, जिसमें 1998-99 और 2005-06 के भारतीय जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डाटा का विश्लेषण किया। इसका निष्कर्ष बताता है कि भारत में बिजली कटौती की समस्या प्राइवेट अस्पतालों में नहीं है। अलग-अलग कारणों के चलते सरकारी अस्पताल सबसे ज्यादा इसका सामना करते हैं, जिसकी वजह से इन अस्पतालों में जन्म लेने वाले शिशुओं में सालाना एक फीसदी से ज्यादा गिरावट देखी गई है।