आचार्य चाणक्य भारत के महान दार्शनिक थे. इसके साथ चाणक्य कूटनीति, अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र के विद्वान थे. आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति के दम पर चंद्रगुप्त मौर्य जैसे साधारण बालक को मगध का सम्राट बना दिया था. आचार्य चाणक्य की चाणक्य नीति में रिश्तों के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. चाणक्य नीति के अनुसार हर इंसान अपने जीवन में सफलता पाना चाहता है. हर कोई चाहता है कि उसका जीवन सुख-समृद्धि में बीते और रुपये-पैसे ये जुड़ी कोई दिक्कत उसके सामने न आए. अगर आप भी ऐसी ही सफलता जीवन में चाहते हैं तो आचार्य चाणक्य के इन श्लोकों को याद कर अपने जीवन में उतार लें.
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेशं विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।।
आचार्य चाणक्य के इस श्लोक का मतलब है कि जो भी इंसान शास्त्रों के नियमों का लगातार अभ्यास करके शिक्षा लेता है उसे सही और गलत की अच्छे से पहचान होती है. नीति से ज्ञान लेने वाला शुभ और अशुभ के बीच फर्क करना जानता है. जिनके जीवन में ज्ञान की कमी नहीं होती है वो जीवन में सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ता है और अपने ज्ञान के बल पर तरक्की के मार्ग में आने वाली हर बाधा को दूर कर लेता है.
प्दुष्टाभार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव नः संशयः ।।
इस श्लोक को जिसने जीवन में उतार लिया उसके मार्ग की हर बाधा दूर हो जाएगी. आचार्य चाणक्य के इस श्लोक का मतलब है कि दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, धूर्त सेवक और सर्प की पहचान होने पर इसने जल्द से जल्द दूरी बना लेनी चाहिए. वरना जीवन में दुखों का सामना लगातार करना पड़ता है, जितनी जल्द आप इनसे दूरी बना लेते हैं आपके सफलता के मार्ग की बाधा उतनी जल्दी दूर हो जाती है और आप रोज तरक्की की नई ऊंचाईओं पर पहुंच जाते हैं.