रायपुर:- अगर आपने कभी भी अपने दादा-दादी या नाना-नानी का घर देखा तो आपको याद होगा कि उनके घर का मुख्य द्वार दो हिस्सों में बटा होता था। सीधा -सीधा कहें तो पहले के दरवाजे हमेशा दो पल्ले वाले हुआ करते थे। हालांकि अब तो सिंगल पल्ले के दरवाजों का चलन आ गया है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पहले के समय में क्यों सिर्फ टू-फेस डोर हुआ करते थे। इस बारे में जब हमने हमारे एक्सपर्ट ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से पूछा तब उन्होंने बताया कि दो पल्ले वाले दरवाजे होने के पीछे भी ज्योतिष शास्त्र से जुड़े कई तर्क और लाभ थे। आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
क्यों होते थे घरों में पहले दो पल्ले वाले दरवाजे?
एक सामान्य दृष्टि से देखें तो यह माना जाता था कि दो पल्ले वाले दरवाजे मजबूत होते हैं और इन्हें तोड़ पाना या फिर इनमें लगी कड़ी को खोल पाना आसान नहीं होता था। इसी कारण से घर की सुरक्षा हेतु लोग दो पल्ले वाले दरवाजे बनवाते थे।
वहीं, अगर ज्योतिष नजरिये से देखा जाए तो शास्त्र कहता है कि दरवाजे के दोनों पल्ले ज्योतिष में वर्णित दोनों पाप ग्रहों को रोकने के लिए बनाये जाते थे। असल में ऐसा माना जाता है कि राहु और केतु के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए दरवाजे में दो पल्ले होते थे।
राहु और केतु वो पाप ग्रह हैं जो घर में हमेशा मुख्य द्वार से ही प्रवेश करते हैं जबकि अन्य ग्रह शुभ होते हैं इसलिए वह किसी भी दिशा से घर में आ सकते हैं। ऐसे में राहु और केतु की अशुभता को घर से बाहर रखने के लिए दो पल्ले वाले दरवाजे बनाए जाते थे।
यही नहीं, इसी कारण से दरवाजे के दोनों पल्लों पर शुभ और लाभ लिख जाता था ताकि घर में शुभता का आगमन हो और घर के लोगों को लाभ ही लाभ मिले। हालांकि अब के समय में सिंगल फेस वाले दरवाजे ही बनाए जाते हैं जो कि वास्तु अनुसार ठीक नहीं है।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से यह जान सकते हैं कि आखिर पहले के घरों में दो पल्ले के दरवाजे ही क्यों होते थे और क्या है इसका महत्व एवं इससे जुड़े ज्योतिषीय लाभ। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।