स्वास्तिक का अर्थ हुआ शुभ होना या शुभ हो। इसीलिए हिंदू धर्म में हर शुभ व मंगल कार्य में स्वास्तिक को अंकित जरुर किया जाता है।
गणेश उत्सव 10 सितंबर से शुरू हो रहा है, ये पर्व 19 सितंबर तक चलेगा। गणेश पूजा में सबसे पहले गणेश जी का प्रतीक चिह्न स्वास्तिक बनाया जाता है। गणेशजी प्रथम पूज्य देव हैं, इस कारण पूजन की शुरुआत में स्वास्तिक बनाने की परंपरा है।
स्वास्तिक बनाकर पूजा करने से सभी धर्म-कर्म सफल होते हैं, और जिन मनोकामनाओं के लिए पूजा की जाती है, वे इच्छाएं भगवान पूरी करते हैं। स्वास्तिक का काफी अधिक महत्व बताया गया है, इसे सही तरीके से बनाने पर ही पूजा पूरी होती है।
स्वास्तिक सीधा और सुंदर बनाना चाहिए।
स्वास्तिक कभी भी आड़ा-टेढ़ा नहीं बनाना चाहिए। ये चिह्न एकदम सीधा और सुंदर बनाना चाहिए। ध्यान रखें घर में कभी भी उल्टा स्वास्तिक नहीं बनाना चाहिए। घर में जहां स्वास्तिक बनाना है, वह स्थान एकदम साफ और पवित्र होना चाहिए। जहां स्वास्तिक बनाएं, वहां बिल्कुल भी गंदगी नहीं होनी चाहिए।
स्वास्तिक में गणेशजी का होता है वास।
शास्त्रों के अनुसार, स्वास्तिक परब्रह्म, विघ्रहर्ता व मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश का भी साकार रूप है। स्वास्तिक का बायां हिस्सा ‘गं’ बीजमंत्र होता है, जो भगवान गणेशजी का स्थान माना जाता है। इसमें जो चार बिंदियां होती है, उनमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानी कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है। वेद भी स्वास्तिक को गणपति का स्वरूप मानते हैं। कहते हैं कि जिस भी स्थान पर स्वास्तिक बनाया जाता है, वहां शुभ, मंगल और कल्याण होता है यानी गणेशजी स्वयं वास करते हैं।
स्वास्तिक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर करता है आकर्षित
स्वास्तिक धनात्मक यानी सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। दरवाजे पर स्वस्तिक बनाने से घर में नकारात्मकता प्रवेश नहीं कर पाती है और दैवीय शक्तियां आकर्षित होती हैं। दरवाजे पर स्वस्तिक बनाने से वास्तुदोष भी दूर हो सकते हैं।
हल्दी का स्वास्तिक करता है वैवाहिक जीवन की समस्याओं को दूर
वैवाहिक जीवन की परेशानियों को दूर करने के लिए पूजा करते समय हल्दी वा कुमकुम से स्वास्तिक बनाना चाहिए।