नई दिल्ली :- ब्लड कैंसर एक बेहद ही गंभीर बीमारी है. जिसे हेमेटोलॉजिक कैंसर भी कहा जाता है. ब्लड कैंसर एक ऐसा कैंसर है जो ब्लड सेल्स को इफेक्ट करता है. यह कैंसर मेनलि से व्हाइट ब्लड सेल्स, रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स को इफेक्ट करता है. जब ब्लड सेल्स में DNA म्यूटेटेड होता है, तो यह ब्लड कैंसर का कारण बन सकता है. DNA जो सेल्स को बताता है कि क्या करना है, म्यूटेटेड होने पर, ब्लड सेल्स को असामान्य रूप से बढ़ने, खंडित होने या मरने का कारण बन सकता है. इसका मतलब है कि डीएनए में गड़बड़ी के चलते ब्लड सेल्स नॉर्मल तौर पर काम नहीं कर पाती हैं, जिससे कई तरह की हेल्थ समस्याएं हो सकती हैं.
ब्लड कैंसर वह कैंसर है जो खून, बोन मैरो या lymphatic system को इफेक्ट करता है. ये कैंसर ब्लड सेल्स के प्रोडक्शन और काम को अवरोधित करते हैं, जिसमें रेड ब्लड सेल्स (ऑक्सीजन ले जाती हैं), व्हाइट ब्लड सेल्स (संक्रमण से लड़ती हैं) और प्लेटलेट्स (रक्त का थक्का बनाने में मदद करती हैं) शामिल हैं.
ब्लड कैंसर के प्रकार
ब्लड कैंसर के तीन मुख्य टाइप होते हैं. इन प्रकारों में ल्यूकेमिया , लिम्फोमा और मायलोमा शामिल हैं.
ल्यूकेमिया : ब्लड और बोन मैरो को इफेक्ट करता है, जिससे इमैच्योर व्हाइट ब्लड सेल्स की असामान्य बढ़ोतरी होती है. ये सेल्स हेल्दी ब्लड सेल्स को उसके स्थान से हटाना हटाती है. इन सेल्स के कार्य को बाधित करती हैं और इम्यून सिस्टम को कमजोर करती हैं.
लिम्फोमा : लिम्फैटिक सिस्टम को टारगेट करता है, जिसमें लिम्फ नोड्स, प्लीहा और अन्य ऑर्गन शामिल हैं जो इम्यून सेल्स का प्रोडक्शन और भंडारण करते हैं. यह लिम्फ नोड्स में ट्यूमर के रूप में प्रकट होता है और अन्य अंगों में फैल सकता है, जिससे इंफेक्शन से लड़ने की शरीर की क्षमता प्रभावित होती है.
मायलोमा : प्लाज्मा सेल्स में पैदा होता है, यह एक प्रकार की व्हाइट ब्लड सेल है जो एंटीबॉडी का प्रोडक्शन करती है. मायलोमा सेल्स बोन मैरो में जमा हो जाती हैं, जबकि सामान्य ब्लड सेल्स के प्रोडक्शन को बाधित करती हैं और हड्डियों को कमजोर करती हैं, जिससे हड्डियों में दर्द और फ्रैक्चर होता है.
बता दें, प्रत्येक प्रकार के ब्लड कैंसर की अपनी विशिष्ट विशेषताएं होती हैं, और बीमारी के फेज और निदान के आधार पर, इलाज के तरीके भी अलग-अलग होते हैं. जिसमें कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, लक्षित चिकित्सा और स्टेम सेल्स प्रत्यारोपण शामिल हैं. बोरीवली स्थित एचसीजी कैंसर सेंटर में हेमेटो ऑन्कोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) फिजिशियन डॉ. अदिति शाह कासकर का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में ब्लड कैंसर के इलाज में काफी डेवलपमेंट हुआ है. इससे ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और मल्टीपल मायलोमा जैसे ब्लड कैंसर से पीड़ित रोगियों के रिजल्ट में सुधार हुआ है.
पहले के समय में ब्लड कैंसर के सभी मरीजों का कीमोथेरेपी से इलाज किया जाता था. हालांकि, इस ट्रीटमेंट प्रोसीजर की प्रभावकारिता सीमित थी और यह टॉक्सिसिटी से जुड़ा था. फिर इम्यूनोथेरेपी की शुरुआत हुई, जो बेहतर प्रभावकारिता और सेफ्टी के साथ ज्यादा टारगेटेड ट्रीटमेंट है. इम्यूनोथेरेपी इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाती है. इम्यूनोथेरेपी का लक्ष्य कैंसर सेल्स को नष्ट करना ही नहीं है, बल्कि इम्यून सिस्टम को इतना मजबूत बनाना है कि वह भविष्य में भी कैंसर सेल्स से लड़ सके.
डॉ. अदिति शाह कासकर का कहना है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट ब्लड कैंसर के कुछ मामलों के लिए किया जाता है जो हाई रिस्क वाले और टॉक्सिक होते हैं. इस बीच, हाल के वर्षों में कैंसर के ट्रीटमेंट में एक नया ट्रीटमेंट डेवलप हुआ है जिसे काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर-टी सेल थेरेपी कहा जाता है. बता दें, काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर-टी सेल थेरेपी ने कुछ प्रकार के कैंसर के लिए ट्रीटमेंट ऑप्शन को बदल दिया है, जिससे अधिक रोगियों को उम्मीद मिली है.
CAR T-सेल थेरेपी क्या है
डॉ. अदिति शाह कासकर के मुताबिक, हमारे शरीर की इम्यून सिस्टम में स्पेशल सेल्स होती हैं जिन्हें T-सेल्स कहा जाता है जो वायरल संक्रमण और कैंसर से लड़ने में मदद करती हैं. CAR T-सेल थेरेपी में, डॉक्टर इन T-कोशिकाओं को किसी व्यक्ति के खून से लेते हैं (एक प्रक्रिया जिसे ल्यूकेफेरेसिस के रूप में जाना जाता है) और उन्हें प्रयोगशाला में संशोधित करते हैं ताकि वे कैंसर सेल्स को अधिक प्रभावी ढंग से पहचान सकें और नष्ट कर सकें.
CAR T-सेल थेरेपी कैसे काम करता है
इन संशोधित कोशिकाओं को CAR T-सेल्स कहा जाता है, जहां “CAR” का अर्थ है चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर, एक विशेष प्रोटीन जो T-कोशिकाओं को कैंसर सेल्स को खोजने में मदद करने के लिए उपयोग जाता है. एक बार जब ये स्मार्ट टी-सेल्स तैयार हो जाती हैं, तो उन्हें Intravenous ड्रिप के जरिए मरीज के शरीर में वापस डाल दिया जाता है. वहां से, वे कैंसर सेल्स की तलाश करते हैं और उन पर हमला कर उन्हे नष्ट कर देते हैं. CAR T-सेल थेरेपी एक बार का इलाज है जिसके लिए रोगी को लगभग 2 सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है, कीमोथेरेपी के विपरीत, इस इलाज के लिए कई सर्किल की आवश्यकता होती है.
CAR T-सेल थेरेपी के साइड इफेक्ट्स
CAR T-सेल थेरेपी के कुछ नार्मल साइड इफेक्ट्स में साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं, और लो ब्लड सेल्स शामिल हैं. CRS एक ऐसी स्थिति है जहां शरीर में साइटोकिन्स की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे बुखार, थकान और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. कुछ रोगियों में, CAR T-सेल थेरेपी के बाद न्यूरोलॉजिकल समस्याएं जैसे कि भ्रम, दौरे, या बोलने में कठिनाई हो सकती है. इसके अलावा, थेरेपी के बाद ब्लड सेल्स कम हो सकती हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.
वर्तमान में, CD19 एंटीजन को लक्षित करने वाली CAR T-सेल थेरेपी, B-सेल नॉन-हॉजकिन लिंफोमा और B-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के मरीजों के इलाज के लिए commercial रूप से उपलब्ध है. इसके अलावा, मल्टीपल मायलोमा के मराजों के लिए भी जल्द ही commercial CAR T-सेल थेरेपी उपलब्ध होगी. ऐसे रोगी में जो पारंपरिक कीमोथेरेपी के प्रति प्रतिरोधी है, CAR T सेल्स थेरेपी में Therapeutic क्षमता है. यह एक टाइप का इम्यूनोथेरेपी है जो शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली का इस्तेमाल कैंसर से लड़ने के लिए करती है, जिससे यह एक Effective treatment options बन जाता है