इजराइली हमले से हर तरफ तबाही झेल रहा लेबनान दुनिया के सबसे प्राचीन देशों में से एक है. छोटा का पर्वतीय देश लेबनान अलग-अलग समय में अलग-अलग देशों-समुदायों के अधीन रहा. फिर इसे आजादी मिली तो अलग-अलग धर्मों के लोगों को एक साथ इसकी सत्ता का हिस्सा बनाया गया. इससे इनमें टकराव शुरू हो गया और जन्म हुआ हिजबुल्लाह का, जिसके कारण आज देश की यह स्थिति हुई है. आइए जान लेते हैं कि आखिर लेबनान हिजबुल्लाह का कैसे बन गया और क्यों मुस्लिम देश नहीं कहा जाता? इसकी कमाई का साधन क्या है?साल 1943 में मिली आजादीआधिकारिक रूप से लेबनान गणराज्य कहा जाने वाला लेबनान पश्चिमी एशिया में भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित है. इसके उत्तर-पूर्व में सीरिया और दक्षिण में इजराइल है.
वास्तव में यह भूमध्य बेसिन व अरब के भीतरी भाग के बीच एक पुलस के रूप में काम करता है, जिसका इतिहास काफी समृद्ध है. इतिहासकारों का मानना है कि लेबनान वास्तव में 2500 ईसा पूर्व से 539 ईसा पूर्व तक फीनिसियनों की संस्कृति का हिस्सा रहा. फिर फ़ारसी, रोमन, यूनानी, अरब और उस्मानी तुर्कों ने इस पर कब्जा किया और आखिर में फ्रांस ने इस पर शासन किया. साल 1943 में लेबनान को फ्रांस से आजादी मिली थी.मिश्रित आबादी वाला देश है लेबनानलेबनान की आबादी में ईसाई, सुन्नी-शिया मुसलमान, द्रुज़ और अन्य कई तबकों के लोग हैं. 60 फीसद लोग मुसलमान हैं, जिनमें आधे शिया और आधे सुन्नी हैं.
ईसाई लगभग 38 फीसदी हैं. इसी कारण लेबनान को मुस्लिम देश नहीं कहा जाता है. इस देश की साक्षरता दर काफी है और मध्यूपर्व में इसे व्यापार के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में जाना जाता है. कुल 38 लाख की आबादी वाले इस देश की राजधानी बेरुत है और क्षेत्रफल 10, 452 वर्ग किलोमीटर है. यहां से खाद्य सामग्री और तंबाकू का मुख्य रूप से निर्यात होता है और प्रतिव्यक्ति आय 6,180 अमेरिकी डॉलर के बराबर है.?गृहयुद्ध के कारण बना लड़ाई का मैदानसाल 1943 में जब लेबनान को आजादी मिली तो एक समझौते के तहत वहां अलग-अलग धर्म के लोगों को अलग-अलग उच्च पदों पर आसीन होने की व्यवस्था की कई थी. धीरे-धीरे इन धर्मों के लोगों को लगने लगा कि उनको सत्ता में कम स्थान मिल रहा है. बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी शरणार्थी आ चुके थे, जिससे देश में सुन्नी आबादी बढ़ गई. साथ ही शिया आरोप लगा रहे थे कि सत्तारूढ़ ईसाई अल्पसंख्यक उन्हें हाशिए पर रख रहे हैं. इसीलिए टकराव शुरू हो गया और साल 1975 से 1990 तक देश गृहयुद्ध की आग में झुलसता रहा. यह देखकर क्षेत्रीय ताकतों खासकर इजराइल, सीरिया और फिलस्तीनी मुक्ति संगठन ने इस देश को अपने लिए लड़ाई का मैदान बना लिया.पहले सीरियाई सैनिक लेबनान में दाखिल हुए. फिर इजराइली सेना ने 1978 और 1982 में हमले किए .
खासकर साल 1982 में इजराइल ने लेबनान में मौजूद फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन के लड़ाकों के खात्मे के लिए हमला कर बेरुत और दक्षिणी लेबनान पर नियंत्रण कर लिया. इस दौरान सबरा और शतीला में भीषण नरसंहार हुआ और लगभग तीन हजार फिलिस्तीनी शरणार्थियों और लेबानान के नागरिकों की जान चली गई. इसी मौके का फायदा ईरान की सेना ने उठाया और लेबनान में एक नए सशत्र गुट को खड़ा कर दिया, जिसे हिजबुल्लाह कहा जाता है. सीरिया भी इसका समर्थन करता है.शिया बहुल क्षेत्रों पर हिजबुल्लाह का कब्जालेबनान के शिया बहुल क्षेत्रों पर हिजबुल्लाह का ही नियंत्रण है, जिसमें बेरुत, दक्षिणी लेबनान और पूर्वी बेका घाटी वाले क्षेत्र का कुछ हिस्सा शामिल है. यही नहीं, हिजबुल्लाह की जड़ें कई और देशों में भी फैली हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की मानें तो ईरान हिजबुल्लाह को ट्रेनिंग, हथियार और ज्यादातर आर्थिक मदद देता है. ईरान से इसको हर साल करोड़ों डॉलर मिलते हैं. वहीं, सीरिया की सरकार से भी इसे सहायता मिलती है.हिजबुल्लाह की कमान अब तक मौलवी हसन नसरल्ला के पास थी. उसने साल 1992 में हिजबुल्लाह के तत्कालीन मुखिया और सह संस्थापक अब्बास अल मुसावी की हत्या के बाद इसके महासचिव का पदभार संभाला था. मुसावी की मौत इजराइल द्वारा किए गए एक हेलीकॉप्टर हमले में हुई थी. इसके बाद से नसरल्ला सात सदस्यीय शूरा परिषद और इसकी पांच उप परिषदों की देखरेख कर रहा था.लेबनान की सरकार का भी हिस्सा हिजबुल्लाहयही नहीं, साल 1992 से हिजबुल्लाह लेबनान की सरकार का भी हिस्सा है. तब इसके आठ सदस्य संसद के लिए चुने गए थे. दरअसल, हिजबुल्लाह का सैन्य संगठन और राजनीतिक संगठन अलग-अलग हैं. इसकी राजनीतिक शाखा ने साल 2005 से कैबिनेट पद भी हासिल कर लिए. राजनीतिक शाखा ने 2009 में अपना एक अपडेटेड घोषणापत्र जारी किया था, जिसमें इसने मुख्यधारा की राजनीति में आने की बात कही थी. लेबनान में साल 2022 में हुए राष्ट्रीय चुनाव में हिजबुल्लाह ने 128 सदस्यों वाली संसद में 13 सीटें जीती थीं. हालांकि, उसके सहयोगी फिर से बहुमत नहीं जुटा पाए.इतना ताकतवर संगठनइंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज ने साल 2020 में एक अनुमान के आधार पर बताया था कि हिजबुल्लाह के पास 20 हजार सक्रिय लड़ाके हैं.
इतने ही लड़ाके रिजर्व हैं. इनके पास छोटे हथियारों से लेकर टैंक, ड्रोन और कई लंबी दूरी के रॉकेट भी हैं. यही नहीं, इजराइल के रक्षा विश्लेषक और ब्रिगेडियर जनरल (रिटा.) असफ ओरियन का दावा था कि हिजबुल्लाह के पास तोपों का एक बड़ा शस्त्रागार है. विशेषज्ञों ने जून 2024 में अनुमान लगाया था कि हिजबुल्लाह के पास अलग-अलग रेंज के 150,000-200,000 रॉकेट और मिसाइलें हैं.ऐसे शुरू हुई जंग की नई इबारतदरअसल, पिछले साल 7 अक्तूबर को हमास ने इजराइल पर बड़ा हमला बोला था. इसमें 1200 इजराइली नागरिक मारे गए और 251 को बंधक बना लिया गया था.
इस पर इजराइल ने हमास के खिलाफ जंग का ऐलान किया तो हिजबुल्लाह ने भी उत्तरी इजराइल पर हमले शुरू कर दिए. इससे इजराइल के 65 हजार लोगों को घर छोड़ने पड़े. 11 महीने तक इजराइल ने केवल गाजा पर फोकस किया तो हिजबुल्लाह थोड़ा निश्चिंत भी हो रहा था. वहीं, इजराइल एक साथ कई मोर्चों पर नहीं लड़ना चाहता था. इजराइल हमास की कमर तोड़ता रहा और ईरान की राजधानी तेहरान में उसके मुखिया इस्माइल हानिया को भी ढेर कर दिया. इस दौरान इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने हिजबुल्लाह की निगरानी जारी रखी.इस बहाने किया हिजबुल्लाह पर हमलागाजा में हमास को पस्त करने के बाद इजराइल ने हिजबुल्लाह पर ध्यान दिया और कहा कि उसे खत्म किए बिना उत्तरी इजराइल के 65 हजार लोग सुरक्षित घर नहीं आ पाएंगे. पहले पेजर और वाकी-टाकी हमला कर हिजबुल्लाह के नेटवर्क को तबाह किया.
हिजबुल्लाह के 15 सौ लड़ाकों की मौत हुई, चार हजार गायब हुए तो बड़ी संख्या में विकलांग हो गए. इससे उनमें दहशत घर कर गई. इसके बाद 23 सितंबर से इजराइल ने हिजबुल्लाह पर हवाई हमले शुरू किए तो उसे अपने लोगों से तालमेल बैठाने के लिए संचार का कोई साधन ही नहीं मिला. इस दौरान इजराइल ने हिजबुल्लाह के हथियारों को पहले निशाना बनाया.एक-एक कर मारे कमांडर, फिर सरगना भी ढेरफिर उसके टॉप कमांडरों में शामिल अजीज यूनिट के कमांडर मोहम्मद नस्सर को ढेर कर दिया. इसके बाद नस्सर यूनिट के कमांडर समी तालेब अब्दुल्लाह को निशाना बनाया. रॉकेट और मिसाइल डिवीजन के कमांडर इब्राहिम कुबैसी को बेरूत में ढेर किया गया.
इजराइल ने खुद को निशाना बनाने वाले रॉकेट कमांडर इब्राहिम मुहम्मद, राडवान फोर्स के कमांडर इब्राहिम अकील, रणनीतिक यूनिट के मुखिया फुआद शुकर, हिजबुल्लाह के दक्षिणी फ्रंट के प्रमुख अली कराकी, कमांडर विस्सम अल तवील, राडवान फोर्स को ट्रेनिंग देने वाले अबु हसन समीर, एरियल यूनिट के कमांडर मोहम्मद हुसैन को एक-एक कर ढेर किया, जिससे हिजबुल्लाह की ताकत घटती गई. इजराइल ने अंतत: 27 सितंबर को बेरुत में हिजबुल्लाह के अंडरग्राउड हेडक्वार्टर पर निशाना साधा, जिसमें सरगना हसन नसअल्लाह भी मारा गया