नई दिल्ली : शिव पुराण हिंदू धर्म के 18 पुराणों में चौथा पुराण है, जिसे सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला पुराण माना जाता है. शिव महापुराण को वेद तुल्य माना गया है. यह पुराण शैव मत संप्रदाय से संबंधित है और भगवान शिव और पार्वती जी पर क्रेंदित है.
शिव पुराण को मूल रूप से संस्कृत में ऋषि महर्षि वेद व्यास के शिष्य रोमाशरण द्वारा लिखा गया था. यह पुराण संस्कृत के साथ ही हिंदी में भी उपलब्ध है. शिव पुराण में सात संहिता हैं, जिसमें विद्येश्व संहिता भी एक है. आइये जानते हैं इस संहिता के बारे में-
विद्येश्वर संहिता : शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता में कुल बीस अध्याय हैं. इसमें शिवरात्रि व्रत का महत्व, पंचकृत्य का महत्व, ओंकार का महत्व, शिवलिंग पूजन के साथ ही दान आदि के महत्व के बारे में विस्तारपूर्वक बतलाया गया है. साथ ही इसमें शिवजी की भस्म और रूद्राक्ष के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है. जानते हैं दान और रुद्राक्ष को लेकर क्या कहती है शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता.
रुद्रस्य अक्षि रुद्राक्ष:, अक्ष्युपलक्षितम्अश्रु, तज्जन्य: वृक्ष:।
रूद्र का अर्थ शिव और अक्ष का अर्थ आमख या आत्मा से है. रुद्राक्ष शब्द की शाब्दिक विवेचना का स्पष्ट अर्थ है, जिसकी उत्पत्ति शिव के अश्रुओं से हुई है.
मान्यता है कि रुद्राक्ष आकार में जितना अधिक छोटा होगा, वह उतना ही अधिक फलदायक होता है. सर्वोत्तम रुद्राक्ष वही है, जिसमें स्वयं छेद हो. यानी किसी उपकरण की सहायता के छेद न किया जाए. वहीं खंडित रुद्राक्ष, क्रीड़ों द्वाराया खाया या गोलाई रहित रुद्राक्ष को धारण योग्य नहीं माना जाता है.
हिंदू धर्म में दान के महत्व के बारे में बताया गया है. लेकिन शिव पुराण में दान के नियम के बारे में भी बताया गया है. शिव पुराण के अनुसार कमाए या अर्जित किए धन का तीन भाग करें. पहला भाग निवेश में लगाएं, दूसरा भाग उपभोग करें और तीसरा भाग धर्म-कर्म के कार्य जैसे दान-पुण्य आदि में व्यय करना चाहिए.