नई दिल्ली:– सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि सैन्य प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न स्तरों पर विकलांग हुए सैनिकों का न सिर्फ मुआवजा और बीमा राशि बढ़ाए बल्कि ठीक हो चुके और विकलांगता के कारण चिकित्सा बोर्ड द्वारा सेवा से बाहर किए जा चुके कैडेटों के पुनर्वास की योजना भी बनाए। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस पी.के. मिश्रा की पीठ ने गुरुवार को सरकार द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट पर गौर किया, जिसमें कहा गया है कि प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांगता के कारण सैन्य संस्थानों से निकाले गए कैडेटों को ‘पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना’ (ECHS) के तहत चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करेगा।
पीठ को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सूचित किया कि 29 अगस्त से ऐसे सभी कैडेटों को ईसीएचएस योजना में शामिल कर लिया गया है। भाटी ने बताया कि उनके लिए एकमुश्त सदस्यता शुल्क भी माफ कर दिया गया है। इस दलील पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया कि पंजीकरण 15 सितंबर तक पूरा कर लिया जाए। इसने साथ ही इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता रेखा पल्ली को न्यायमित्र नियुक्त किया।
सभी दिव्यांग कैडेटों को ECHS सुविधा
पीठ ने कहा, ‘‘भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के सैनिक कल्याण विभाग ने सभी दिव्यांग ‘आउटबोर्ड कैडेटों’ को ईसीएचएस के रूप में चिकित्सा सुविधा प्रदान की है, जिसके लिए कोई सदस्यता शुल्क नहीं लिया जाता। वर्तमान में अधिकारियों द्वारा देय 1,20,000 रुपये का एकमुश्त सदस्यता शुल्क ऐसे दिव्यांग/आउटबोर्ड कैडेटों से नहीं लिया जाता।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सराहनीय है।
बीमा कवर बढ़ाने के प्रयास करें
दिव्यांग कैटेडों के आर्थिक लाभ के मुद्दे पर कोर्ट ने 2017 से प्रभावी अनुग्रह राशि (मुआवजे की रकम) पर ध्यान दिया और इसे बढ़ाने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए इसे केंद्र सरकार बढ़ाए। वर्तमान में लागू बीमा योजना के संबंध में शीर्ष अदालत ने कहा कि यह पर्याप्त नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘आउटबोर्डेड’ कैडेटों के लिए बीमा कवर बढ़ाने के प्रयास भी किए जाने चाहिए
वे पढ़े-लिखे लोग हैं, उनका पुनर्वास कराएं
न्यायालय ने यह भी कहा कि जिन कैडेट्स को दिव्यांगता के कारण मेडिकल बोर्ड ने सेवा से बाहर कर दिया है, उनके पुनर्वास के लिए उनका पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए। पीठ ने दो टूक कहा, ‘‘ये शिक्षित लोग हैं और उन्होंने प्रवेश परीक्षा पास की है। वे किसी न किसी तरह की नौकरी करने में सक्षम हैं। पूर्व सैनिक के रूप में नहीं, लेकिन जहां तक संभव हो सके, उन्हें किसी तरह का डेस्क कार्य दिया जा सकता है।’’
पिछले महीने SC ने लिया था स्वत: संज्ञान
सुनवाई के दौरान भाटी ने कोर्ट को बताया कि मृत्यु की स्थिति में एकमुश्त अनुग्रह राशि के रूप में 12.5 लाख रुपये तथा परिजनों को 9,000 रुपये प्रति माह पेंशन के रूप में दिए जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘1992 से वायुसेना, थलसेना और नौसेना के पास अपना बीमा है जो सदस्यता आधारित बीमा की तरह है। इसलिए कैडेटों को इसमें शामिल किया जाता है। सेना समूह बीमा निधि है। मासिक बीमा प्रीमियम का भुगतान सैन्य कर्मियों द्वारा किया जाता है।’’ शीर्ष अदालत ने दलीलों पर गौर किया और मामले की सुनवाई सात अक्टूबर के लिए टाल दी। शीर्ष न्यायालय ने पिछले महीने एक अखबार की रिपोर्ट पर इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। (
