बस्तर:– छत्तीसगढ़ के बस्तर की धरती, जो कभी गोलियों की आवाज से गूंजती थी, अब उम्मीदों और नए जीवन के गीत गा रही है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की संवेदनशील नीतियों और मानवीय दृष्टिकोण ने न केवल माओवाद की जड़ों को कमजोर किया है, बल्कि हिंसा की अंधेरी राह पर भटके युवाओं को जीवन की रोशनी दिखाने का काम भी किया है।
आत्मसमर्पण से बदले हालात
बीजापुर जिले में आज इतिहास दोहराया गया। सुरक्षाबलों और प्रशासन के संयुक्त अभियान “पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन के तहत 51 माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में वापसी की। इन सभी पर कुल ₹66 लाख का इनाम घोषित था। आत्मसमर्पण करने वालों में कई वरिष्ठ और कैडर स्तर के माओवादी शामिल हैं, जो लंबे समय से जंगलों में सक्रिय थे और सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बने हुए थे।
मुख्यमंत्री साय की संवेदनशील सोच
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस सामूहिक आत्मसमर्पण का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार का लक्ष्य केवल माओवाद को खत्म करना नहीं, बल्कि माओवादियों को समाज में पुनः स्थापित करना है। उन्होंने कहा कि “संवाद से समाधान” की नीति ने बस्तर में शांति और भरोसे का माहौल तैयार किया है। सरकार आत्मसमर्पण करने वालों को न केवल कानूनी सुरक्षा दे रही है, बल्कि उन्हें कौशल विकास, स्वरोजगार और शिक्षा से जोड़ने के लिए विशेष कार्यक्रम भी चला रही है।
‘पूना मारगेम’ ने खोला नया रास्ता
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के मुताबिक, आत्मसमर्पण करने वाले ज्यादातर नक्सली बासागुड़ा, उसूर और भैरमगढ़ क्षेत्रों में सक्रिय थे। पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा बलों के दबाव और सरकार की संवेदनशील नीतियों ने उन्हें बदलने के लिए प्रेरित किया। “पूना मारगेम” यानी “सही रास्ता” इस अभियान के तहत सरकार न केवल माओवादियों को समाज में लौटा रही है, बल्कि उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अवसर भी दे रही है।
नक्सल-मुक्त छत्तीसगढ़ की ओर
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में देश “नक्सल मुक्त भारत” की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। उनका दावा है कि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ पूरी तरह से नक्सल हिंसा से मुक्त होगा और विकास, शिक्षा और शांति के नए युग में प्रवेश करेगा।
