
गौतम कुमार झा
आज है 2 अक्टूबर का दिन,
आज का दिन है बड़ा महान।
आज के दिन दो फूूल खिले थे,
जिनसे महका हिन्दुस्तान।।
फिल्म परिवार का यह गाना अपने जमाने में बड़ा मशहूर था। देशभक्ति कार्यक्रम हो,कोई सरकारी कार्यक्रम हो या फिर बच्चों के जन्म दिवस पर यह गाना बजता ही था। गाँव क़स्बे, शहर आदि के गली मुहल्ले,चौक चौराहे पर हमेशा सुना जा सकता था।मगर आज यह गीत एक आम गीत बन कर रह गया है। मेरा ऐसा कहना इसलिए सार्थक है क्योंकि इस गीत में जिन दो व्यक्तियों की चर्चा की गई है ,उनमें से एक तो पूरा विश्व और देश के कोने-कोने में लोकप्रियता हासिल है मगर दूसरे व्यक्ति के जानता हर कोई है मगर स्मरण बहुत कम लोगों को ही रहता है। आप मे से कई लोग हमारा विरोध भी करेंगे मगर बात हकीकत की हो तो आपको भी शायद ही याद हो। राह चलते किसी मुसाफिर से, स्कूल और सरकारी कार्यालयों में, भिन्न-भिन्न जगहों पर किसी भी व्यक्ति से अगर पूछा जाए कि 2 अक्टूबर को क्या है? तो सीधा जबाब होता है। महात्मा गाँधी का जन्म दिवस है 2 अक्टूबर को। इक्के दुक्के लोग ही होते हैं जिन्हें याद होता है कि देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का जन्म भी 2 अक्टूबर को ही हुआ था। कुछ लोगों का यह भी कहना होता है कि देश के राष्ट्रपिता के सम्मान में अगर किसी प्रधानमंत्री के जन्म दिवस स्मरण नहीं रह सका तो इसमे कौन सी बड़ी बात हो गई? और काफ़ी हद तक सही भी है, जब आप एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हो इसकी निर्णय करना,की आपको क्या करना है? क्या नहीं करना चाहिए? आप किसके समर्थक हो?आदि बहुत सारे सवालों का जवाब आपके पास खुद होता है जिसका निर्णय आप लेते हो। लेकिन एक के समर्थक होने के कारण या फिर एक लोकप्रियता के कारण अगर आप प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई ऐसा निर्णय लेते हो जिसकी वास्तविकता लोकप्रियता के नीचे दब गयी हो तो वह दिखावे के अलावे कुछ नहीं हो सकता। और ऐसे ही लोग देश के सभ्यताओं, संस्कृति, लोगों की कृतियों को धूमिल करते है। और दूसरे लोगों को विवश करते है कि वो देश की अस्मिता पर उंगली उठाये। क्योंकि अगर गाँधी ने देश को आज़ादी दिलाने के लिए अपना योगदान दिया है तो आज़ादी के संघर्ष से लेकर आज़ादी के बाद तक देश को एकजुट करने का श्रेय लालबहादुर शास्त्री को भी जाता है। आज़ादी के बाद जब भारत बिखरा पड़ा था। लोग जाती धर्म, संप्रदाय, समुदाय आदि के नाम पर एक दूसरे से लड़ रहे थे। आंतरिक स्थिति देख कर दुश्मन देश की सीमाओं पर ताक लगाए बैठा था। देश भुखमरी से परेशान था। भारत अलग अलग अंतरराष्ट्रीय कर्जों में डूबा हुआ था। ऐसे विषम परिस्थितियों में देश को जिस नेतृत्व की जरूरत थी उसे पूरा लालबहादुर शास्त्री ने किया था। चाहे राष्ट्रीय स्तर पर देश में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, बाजार, सीमा सुरक्षा, ऊर्जा, कृषि,आदि को एक सिरे से सुव्यवस्थित करना हो या अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर देश की मर्यादा, गौरव और भारतीयता के प्रति लोगों के मन में सम्मान की भावना जागृत करना हो गुदड़ी का यह लाल कभी पीछे नहीं हटा। इनके शासनकाल में भारत ने उस ऊँचाइयों को छुआ है जहाँ खड़े होकर आज हम विश्व को उसकी औकात से रूबरू करवा रहे है। इनकी प्रोफेशनल और पर्सनल जिंदगी में किसी भी प्रकार का कोई अन्तर नहीं होना और सदा जिवन जीने की शैली के साथ साथ देशभक्ति का जो जुनून इनके अंदर था वो बातें आज इन्हें अमर कर दिया है। भले ही हम आप इसको भूलने को तत्पर हो मगर इतिहास कभी मिटता नहीं है। मातृभूमि के रक्षा के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाला भारत माँ का यह सपूत महज अपने जन्मदिवस को उत्सव के रूप में मनाने का समर्थक कतई नहीं रहा होगा। मगर हमारा कर्तव्य बनता है कि हम ऐसे महापुरुषों को जन्मदिवस के उपलक्ष्य में ही सही मगर याद जरूर रखें।