नई दिल्ली:– किडनी शरीर के सबसे अहम अंगों में से एक है जो शरीर का सबसे मुश्किल काम करती हैं जैसे खून साफ करना, बॉडी में फ्लूइड बैलेंस रखना और ब्लड प्रेशर कंट्रोल करना. लेकिन कई बार लेकिन कई बार वही दवाएं, जो हमें ठीक करने के लिए दी जाती हैं, किडनी को नुकसान पहुंचाने लगती हैं. द लैंसेट की लेटेस्ट स्टडी के मुताबिक, साल 2023 में करीब 13.8 करोड़ भारतीय क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) की समस्या से पीड़ित थे. चिंता बढ़ाने वाली बात यह है कि 2018 से 2023 के बीच वयस्कों में इसकी दर 11.2 प्रतिशत से बढ़कर 16.4 प्रतिशत हो गई थी. यानी कि लगातार इस बीमारी के केस बढ़ रहे हैं.
कई बार लोग बीमारी में लंबे समय तक या बिना मॉनिटरिंग के कुछ ऐसी दवाएं ले लेते हैं जो चुपके से उनकी किडनी को नुकसान पहुंचाने लगती हैं और उसे कमजोर कर सकती हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दवाओं की कुछ ऐसी कैटेगरी हैं जो किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं. वे कौन से ड्रग्स के ग्रुप हैं, उनके बारे में जान लीजिए.
नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश हुई रिसर्च के मुताबिक, इबुप्रोफेन, नेप्रॉक्सन, डिक्लोफेनाक आदि कॉमन दर्द निवारक दवाएं इस कैटेगरी में आती हैं. ये दवाएं आमतौर पर किडनी में ब्लड वेसिल्स को फैलाने वाले प्रोस्टाग्लैंडिन्स को रोकती हैं जिससे किडनी में खून का फ्लो कम हो सकता है. अगर आप डिहाइड्रेटेड हैं या आपका ब्लड प्रेशर कम है तो इससे किडनी को नुकसान पहुंच सकता है.
एमिनोग्लाइकोसाइड एंटीबायोटिक्स
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश हुई अन्य रिसर्च कहती है, इस ग्रुप वाली दवाएं बैक्टीरियल इंफेक्शन के ट्रीटमेंट में उपयोग की जाती हैं जैसे जेन्टामाइसिन, टोब्रामाइसिन, अमिकासिन. ये दवाएं किडनी की ट्यूबल कोशिकाओं में जमा होकर फ्री रेडिकल्स पैदा करती हैं और उन्हें नुकसान पहुंचा सकती हैं. लंबे समय तक लेने पर या फिर दूसरी किडनी के लिए नुकसानदायक दवाओं के साथ लेने पर गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं.
वैंकोमाइसिन एवं अन्य ग्लाइकोपेप्टाइड्स
ऑक्सफोर्ड अकादमी के मुताबिक, जब नॉर्मल एंटीबायोटिक्स काम नहीं करतीं तो उनकी जगह ये एंटीबायोटिक्स का प्रयोग किया जाता है. जब इनकी अधिक मात्रा दी जाए या किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली अन्य दवाएं साथ में ली जाएं तो इनका नुकसान अधिक हो सकता है.
रैडियोकॉन्ट्रास्ट एजेंट्स
जेपी जर्नल में पब्लिश हुई स्टडी के मुताबिक, सीटी स्कैन, एंजियोग्राफी आदि में जो रंग (डाई) इस्तेमाल होता है, वह किडनी में ब्लड फ्लो कम कर सकती हैं, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ा सकता हैं और ट्यूब्यूलर कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है. खासकर उन लोगों में जिनको किडनी की समस्या पहले से हो या फिर डिहाइड्रेशन का जोखिम हो.
हैमो-डायनामिक्स को प्रभावित करने वाली दवाएं (ACE Inhibitors / ARBs साथ अन्य जोखिमों के साथ)
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश हुई अन्य रिसर्च कहती है, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज और किडनी डिजीज के इलाज में प्रयोग होने वाली दवाएं लिसिनोप्रिल, रैमिप्रिल, लॉसार्टन आदि सामान्यतः तो फायदेमंद होती हैं लेकिन यदि बॉडी डिहाइड्रेट हो या अन्य किडनी की दवाओं के साथ लिया जाए तो इससे अचानक ब्लड फ्लो कम हो सकता है जो किडनी के काम को अस्थायी रूप से बिगाड़ सकती हैं.
