नई दिल्ली:– हिन्दू धर्म में गंगा नदी पूजनीय है. इसे हमारे ग्रंथों में मां का दर्जा दिया गया है. मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने मात्र से आपके सारे पाप धुल जाते हैं. इससे रोग-दोष भी दूर होते हैं. साथ ही यह भी माना जाता है कि इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह भी कहा जाता है कि घर में गंगाजल रखने से नकारात्मकता दूर होती है. लेकिन, क्या आप जानते हैं काशी उर्फ वाराणसी में गंगा उल्टी क्यों बहती है इसके पीछे का कारण क्या है? अगर आपका जवाब न है तो आज इस लेख में हम इसके पीछे का रहस्य बताने जा रहे हैं…
आपको बता दें कि मणि कर्णिका घाट से तुलसी घाट तक गंगा उल्टी बहती हैं. इन दोनों घाटों के बीच की दूरी 1.5 किलोमीटर है और इतनी दूरी में करीब 45 घाट पड़ते हैं. गंगा के उल्टी बहने के पीछे धार्मिक और भौगोलिक दोनों कारण हैं. पहले हम धार्मिक कारण पर बात करते हैं –
पुराणों के अनुसार, स्वर्ग से जब धरती पर गंगा उतरी थीं तो बहाव इतना तेज था कि वाराणसी के घाट पर तपस्या कर रहे भगवान दत्तात्रेय का आसन और कमंडल डेढ़ किलोमीटर तक आगे बह गया, जिसे वापस करने के लिए गंगा वापस लौटकर आती हैं और उन्हें उनकी वस्तुएं लौटाती हैं और उनसे क्षमा मांगती हैं. तब से गंगा नदी काशी में डेढ़ किलोमीटर तक उल्टी बहती हैं, फिर सामान्य हो जाती हैं
वैसे गंगा नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं, लेकिन जब काशी में प्रवेश करती हैं, तो इसका बहाव धनुष के आकार का हो जाता है, जिसके कारण गंगा दक्षिण से पूर्व की ओर मुड़ जाती है, इसके बाद पूर्वोत्तर की तरफ. ऐसा इस स्थान का घुमावदार होने के कारण है, जिसके कारण डेढ़ किलोमीटर की दूरी में भंवर बन जाता है और मणिकर्णिका से तुलसी घाट तक देवी गंगा उल्टी बहती हैं.